Stock Market Investment: शेयर बाजार में निवेश का है प्लान, तो पहले समझ लें ये जरूरी बातें
शेयर बाजार में निवेस का चलन बढ़ता जा रहा है. शेयर बाजार में निवेश के लिए कुछ बुनियादी बातों की जानकारी होना जरूरी है.
By: एबीपी न्यूज़ | Updated at : 12 Jul 2021 11:19 PM (IST)
शेयर बाजार में निवेश करने का चलन बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि अब भी कई लोगों का मानना है कि यह बहुत तकनीकी काम है. आप अगर शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं तो आपको कुछ बेसिक जानकारियां होनी जरूरी है. यह जानकारियां आपके बहुत काम आएंगीं. हम आपको कुछ ऐसे अनुपातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप आसानी से शेयर का मूल्यांकन कर सकेंगे.
प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (P/E)
सबसे पहले बात पीई रेश्यो की. इसका इस्तेमाल किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू का पता लगाने के लिए किया जाता है. पीई शेयर की कीमत और शेयर से आय का अनुपात होता है. इसका मतलब होता है अर्निंग प्रति शेयर. यह एक ही सेक्टर में दो कंपनियों के बीच सलेक्शन में मददगार होता है. बता दें कि शेयर से आय को ईपीएस भी कहते हैं.
P/E = (प्रति शेयर मूल्य/प्रति शेयर आय)
पीईजी रेश्यो
कंपनी की आय में बढ़ोतरी को ध्यान में रखकर शेयर के मूल्य को खोजने में PEG रेश्यो का इस्तेमाल किया जाता है. पीई कंपनी की विकास दर को अनदेखा कर देता है, लेकिन पीईजी अनुपात में ऐसा नहीं है. यही वजह है कि इसे पीई के मुकाबले बेहतर मानते हैं.
पीईजी अनुपात = (पीई अनुपात/आय में अनुमानित वार्षिक वृद्धि)
प्राइस टू बुक वैल्यू रेश्यो
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात को कंपनी का शुद्ध संपत्ति मूल्य भी कहा जाता है. यह कुल संपत्ति माइनस अमूर्त संपत्ति और देनदारियों के रूप में गणना कर निकलता है. उन कंपनियों को कम मूल्यवान माना जाता है जिनका प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात कम होता है.
प्राइस टू बुक वैल्यू रैश्यो = (प्रति शेयर बाजार मूल्य/प्रति शेयर बुक वैल्यू)
प्रति शेयर आय (ईपीएस)
ईपीएस प्रत्येक शेयर के लिए आवंटित कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है. यह कंपनी की लाभप्रदता के संकेतक के रूप में कार्य करता है. प्रति शेयर आय एक वित्तीय अनुपात है, जो शुद्ध आमदनी को आम में विभाजित करता है. प्रति शेयर आय बढ़ाने वाली कंपनियों के शेयर को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है.
ईपीएस = (शुद्ध आय/कुल शेयर)
रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई)
यह इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) दर्शाता है कि कंपनी शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कितनी बेहतर है. यह शेयरधारक को इक्विटी के फीसदी के रूप में दी गई शुद्ध आय की राशि है. उन कंपनियों के शेयरों में निवेश करना बेहतर होता है जिनका पिछले तीन सालों का औसत आरओई ब्याज दर और महंगाई दर की कुल राशि से ज्यादा है.
आरओई = (शुद्ध आय/शेयरधारकों का कुल फंड)
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Published at : 12 Jul 2021 11:19 PM (IST) Tags: Money Investment Stock Market हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
PE Ratio Kya Hota Hai ? और Share Ka PE Ratio Kitna Hona Chahiye ?
यदि आप स्टॉक मार्केट यानि शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट करते है तो आपको ये जानना अति आवश्यक है की PE Ratio Kya Hota Hai ?, PE Ratio Meaning, PE Ratio Formula Kya Hota Hai ?, PE Ratio Kitna Hona Chahiye ? और PE के आधार पर निवेश के महत्वपूर्ण तथ्य क्या – क्या होते है।
यदि आप किसी स्टॉक को लम्बी अवधी के लिए खरीद रहे है तो आपको ये पता होना चाहिए की आप जो स्टॉक खरीद रहे है वो बहुत महंगा तो नहीं है अगर आप बिना इसके मूल्यांकन के स्टॉक में इन्वेस्टमेंट करते है तो आपका नुकसान हो सकता है। आपको किसी भी स्टॉक में इन्वेस्ट करने से पहले उस स्टॉक का फंडामेंटल एनालिसिस करना बहुत जरूरी है। इसका मूल्य आपको स्टॉक का PE Ratio चेक करने पर पता चलेगा।
इसके लिए आपको ये भी जानना होगा EPS Kya Hota Hai ?
PE Ratio Kya Hota Hai ? (What is PE Ratio in Hndi)
PE Ratio Full Form होता है Price to Earning Rartio. PE Ratio Meaning in Hindi इसका मतलब है कीमत से कमाई का अनुपात, इससे स्टॉक के मूल्य का पता चलता है, की वर्तमान में स्टॉक के प्रति शेयर मूल्य के आधार पर भविष्य में होने वाली कमाई के प्रत्येक रुपये का आकलन होता है। PE Ratio शेयर के वर्त्तमान की कीमत को समझाने में मदद करता है और इसकी अनुमानित प्रति शेयर की कमाई के सापेक्ष इसकी कीमत के आधार पर वृद्धि का अनुमान लगाया जाता है।
उदाहरण : माना किसी शेयर का PE 15 है तो इसका मतलब की इस स्टॉक में आपको भविष्य में 1 रूपये कमाने के लिए वर्तमान में आपको 15 रूपये खर्च करने होंगे |
P/E Ratio निकालने का सूत्र ( PE Ratio Formula)
किसी स्टॉक की वर्तमान प्रति शेयर मार्केट मू ल्य में प्रति शेयर आय (E.P.S.) से भाग देने पर PE Ratio निकलता है |
PE Ratio = Per Share Price / E.P.S.
जहाँ E.P.S.= Earning per share = Total Profit of the company/Number of total share of the company
किसी कंपनी के कुल प्रॉफिट में कुल शेयर की संख्या से भाग देने पर E.P.S. निकलता है |
TTM E.P.S. से तात्पर्य है की पिछले एक वर्षो में कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहा है | कंपनी के शेयर होल्डर्स को प्रति शेयर कितना रिटर्न मिला है |
PE के आधार पर निवेश के महत्वपूर्ण तथ्य (PE Ratio Kitna Hona Chahiye)
मॉर्केट के कथनानुसार अगर किसी कंपनी का फंडामेंटल्स और उसके रिजल्ट बेहतर है तथा उसका P/E Ratio 10 से 15 के बीच है तो यहाँ पर स्टॉक खरीदना भविष्य के लिए एक अच्छा निवेश माना जाता है क्योकि 15 के नीचे स्टॉक undervalued माना जाता है | यदि स्टॉक का PE Ratio 20 से 30 के बीच या उसके ऊपर है तो यहाँ पर प्रॉफिट बुक करना एक अच्छा माना जाता है क्योकि 30 के ऊपर का PE Ratio overvalued स्टॉक माना जाता है |
यदि किसी कंपनी का शेयर खरीदना है, तो उस कंपनी के PE को चेक करे यानि जिस सेक्टर में कंपनी है। कंपनी के PE Ratio को Sector PE और Strong Peer कंपनी से तुलना करे, की कही कंपनी का PE Ratio इन दोनों की तुलना में ज्यादा तो नहीं है | बहुत ज्यादा PE वाले स्ट्रांग फंडामेंटल के शेयर में आप शार्ट टर्म में कई गुना रिटर्न की उम्मीद नहीं कर सकते। यदि किसी कंपनी का PE Ratio 10 से नीचे है तो उसका E.P.S. सही होना चाहिए |
कंपनी का PE Ratio हमेशा प्रॉफिट के आधार पर बदलता रहता है | बहुत ज्यादा स्ट्रांग फंडामेंटल और ब्रांडिंग वाले शेयर जैसे आईटी कम्पनिया, टेक्नोलॉजी से सम्बंधित कम्पनिया, और दूरसंचार कंपनियों का PE टेक्सटाइल या विनिर्माण क्षेत्रों वाली कंपनियों से अधिकतर ज्यादा ही होता है | कुछ कम्पनिया देश की अर्थव्यस्था यदि तेजी से बढ़ रही है तो उसका उन्हें लाभ मिलता है जिससे कंपनियों के भविष्य में ग्रोथ करने की सम्भावना अधिक होती है जिससे उनका PE Ratio अधिक होता है जिसके लिए निवेशक उसे सभी मूल्य पर खरीदना चाहते है | घाटे में चल रही कंपनी का P/E Not Applicable लिखा होता है या निगेटिव रहता है |
स्टॉक खरीदने से पहले Nifty/Sensex का PE Ratio देखे उसके बाद उसके रेंज में आने का इंतजार करे और फिर मजबूत फंडामेंटल और कम P/E वाले शेयर में निवेश करे |
वर्तमान स्टॉक के मौजूदा ट्रेडिंग वैल्यू P/E को चेक करने के लिए ऑनलाइन किसी भी वित्तीय वेबसाइट से इकट्ठा किया जा सकता है।
एक महत्वपूर्ण निवेश निर्णय लेने से पहले कंपनी या क्षेत्र के बारे में पूरी तरह से शोध किया जाना चाहिए |
Nifty का PE Ratio से सम्बंधित डाटा
1999 में जब निफ़्टी का PE Ratio 12 था तब मार्केट के ऊपर जाने पर निवेशकों को 105 % का रिटर्न मिला था | 2003 में जब P/E Ratio 11 था तब रिटर्न 116 % का मिला था | 2008 में मार्केट क्रैश होने के बाद बॉटम बना और उस समय PE 10 था वहाँ से प्रति वर्ष रिटर्न 130 % का मिला |
जब फ़रवरी 2000 में PE Ratio 28 था तो वहाँ से मार्केट गिरने पर रिटर्न निगेटिव 53 % था | और जब जनवरी 2008 में मार्केट अपने टॉप पर था और उस समय किसी ने खरीदारी की होगी तो उस वर्ष उसे नेगेटिव 64 का रिटर्न मिला होगा | इसीलिए हमेशा निवेश के पहले मार्केट का ट्रेंड देखना चाहिए की मार्केट लगातार बहुत ज्यादा तो नहीं बढ़ गया बिना किसी करेक्शन के |
नोट:आपको किसी भी स्टॉक में निवेश करने के लिए केवल उस कंपनी के कम/अधिक PE Ratio के आधार पर नहीं करना चाहिए बल्कि उसके उच्च फंडामेंटल्स, भविष्य में ग्रोथ करने की सम्भावना और उस कंपनी पर अपनी खुद की अच्छी तरीके से शोध करने के बाद ही करना चाहिए |
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शेयर बाजार मे निवेश के पहले फंडामेंटल से संबन्धित और भी महत्वपूर्ण आर्टिकल नीचे पढ़े
CE Means in Share Market, CE और PE का क्या मतलब होता है?
CE और PE के बारे में जानने का मतलब है कि आप ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रवेश कर चुके हैं। आपने चाहें किसी भी ब्रोकर से भी डीमैट अकाउंट खुलवाया हो, आपको ऑप्शन खरीदते समय हर एक स्ट्राइक प्राइस के आगे CE और PE लिखा दिखाई देगा। तो चलिए जानते है ये क्यों लिखा जाता है शेयर बाजार में पीई क्या है और इसका मतलब क्या होता है?
ध्यान रहे, यह आम आदमी के लिए पैसे गंवाने का एक एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ठीक सुना, ऑप्शन ट्रेडिंग एक पैसे गंवाने का विकल्प है जिसमे पैसे बनने से ज़्यादा चले जाते हैं इसलिए आम आदमी को ऑप्शन ट्रेडिंग करने की सलाह नहीं दी जाती।
CE Means in Share Market
CE का फुल फॉर्म कॉल यूरोपियन(Call European) होता है जिसे कॉल ऑप्शन भी कहा जाता है। यह ऑप्शन ट्रेडिंग का एक ऑप्शन होता है जिसे निवेशक ये सोचकर खरीदता है कि आगे जाकर इस शेयर की कीमत में बढ़ोतरी होगी। चलिए हम आपको एक कहानी सुनाते हैं |
CE से जुड़ी मेरी कहानी
एक बार मेरे एक चाचा को दिल्ली में जमीन खरीदनी थी। अब क्योंकि उन्हें स्टॉक मार्किट के बारे में नहीं पता था तो वे ऐसे ही रियल एस्टेट में इन्वेस्टमेंट करने की सोच रहे थे।
खुशकिस्मती से उन्हें एक गाँव के अंदर बहुत सी जमीन मिल गयी। जब उन्होंने किसान से जमीन का दाम पूछा शेयर बाजार में पीई क्या है तो उसने 5 करोड़ बताया |
दिक्कत ये थी कि उस समय उनके पास केवल 50 लाख रूपये थे और वे पूरी जमीन खरीदना चाहते थे क्योंकि जल्द ही पास में एयरपोर्ट बनने वाला था जिससे उस जमीन की कीमत आसमान छूने लगती।
आगे जानते हैं क्या हुआ?
चाचा ने उन किसान को 50 लाख रूपये दे दिए और वादा किया कि 6 साल बाद वे किसी और को जमीन बेचकर 5 करोड़ रूपये चुका देंगे। अब किसान भी खुश हो गए क्योंक जमीन की कीमत कितनी भी हो 50 लाख तो मिल ही रहे हैं।
इसके बाद तो आपको क्या ही बताऊँ।
उस जमीन की कीमत 12 करोड़ रूपये हो गयी थी तो चाचा ने जमीन 12 करोड़ में बेच दी और किसान को 5 करोड़ रूपये चुकाकर 7 करोड़ रूपये का प्रॉफिट किया।
ठीक ऐसे ही CE ऑप्शन खरीदने पर होता है। आप ये सोचकर खरीदते हैं कि आगे जाकर इस कंपनी के शेयर की कीमत बढ़ जाएगी।
What is CE and PE in Stock Market?
CE का फूल फोर्म Call European और PE का फुल फॉर्म Put European होता है। यह दोनों ऑप्शन ट्रेडिंग से सम्बंधित है।
CE बढ़ते बाजार का सूचक है और इसलिए जब किसी शेयर के आगे तरक्की करने की सम्भावना होती है तो Call Option खरीदना फायदेमंद होता है। आप ये सोचकर खरीदते हैं कि आगे जाकर इस कंपनी के शेयर की कीमत बढ़ जाएगी।
जबकि दूसरी और PE गिरते बाजार की निशानी है। आने वाले समय में जब किसी शेयर के गिरने की सम्भावना ज्यादा होती है तो निवेशकों के लिए Put Option खरीदना फायदे का सौदा होता है।
आप चाहे कॉल खरीदें या पुट, प्रीमियम आपको हर हल में चुकाना होगा और एक्सपायरी के दिन पूरी कीमत भी देनी होगी।
CE और PE से जुड़ी कुछ शर्तें
Option Premium क्या होता है?
अपनी ऑप्शन की खरीद पक्की करने के लिए हमें पहले से ब्रोकर को कुछ पैसे चुकाने होते हैं | इस मूल्य को हम ‘ऑप्शन प्रीमियम’ कहते हैं। जैसे कहानी में चाचा ने किसान को 50 लाख रूपये चुकाए थे।
स्पॉट प्राइस का मतलब
स्पॉट प्राइस उस समय की कीमत बताती है जिस समय सौदा हुआ। जिस समय सौदा हुआ था उस टाइम पूरी जमीन की कीमत 5 करोड़ रूपये थी तो हम इसे ही स्पॉट प्राइस कहेंगे। स्टॉक मार्किट में किसी शेयर या equity को खरीदने से पहले उसकी CMP देखी जाती है।
Underlying एसेट क्या है?
हम जिस चीज़ को खरीद रहे हैं या सौदा कर रहे हैं, उसे Underlying Asset कहते हैं जैसे मेरे चाचा ने जमीन खरीदी थी लेकिन स्टॉक मार्किट में शेयर्स होते हैं।
ऑप्शन बायर और ऑप्शन सेलर
हर ऑप्शन ट्रेडिंग में एक ऑप्शन खरीदने वाला और ऑप्शन बेचने वाला भी होता है। कहानी में किसान ऑप्शन बेचने(Option Seller) वाले हैं और चाचा ऑप्शन खरीदार(Option Buyer) हैं।
Expiry का समय
वह समय सीमा जिसमे ऑप्शन खरीदने वाले को बचे हुए पैसे चुकाने है। कहानी में वह 6 महीने है। यह किसी शेयर के लिए उसकी Intrinsic Value से ऊपर जाने के लिए ठीक ठाक समय लगता है पर ऑप्शन में दाँव उल्टा ज्यादा पड़ता है क्योंकि मार्किट अप्रत्याशित है।
Verdict
ऑप्शन ट्रेडिंग करते समय खरीदने वाले ये सोचकर खरीदते हैं की कीमत बढ़ेगी पर हमेशा ऐसा नहीं होता। आप जैसे ही सोचने लगेंगे की अब मार्किट को समझ गए, उसके अगले दिन ही मार्किट आपको चौंका देगा।
इसलिए हमेशा सीखते रहिये और ट्रेडिंग में केवल उन्ही पैसो का इस्तेमाल करिये जो अगर चले भी जाये तो आपको दिक्कत न हो और लोन लेकर ट्रेड करने का पाप बिलकुल न करें।
शेयर बाजार में PE रेश्यो क्या है। What is PE ratio in hindi
PE रेश्यो क्या है? शेयर बाजार में invest करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आपने इस PE रेश्यो के बारे बात करते हुए कभी ना कभी तो सुना होगा। इसीलिए आज हम आपको अच्छे से इस concept को explain करेंगे ताकि आप लोग अच्छे से जान सके की PE रेश्यो क्या है और शेयर बाजार में इसका कितना महत्व है।
जो भी लोग शेयर बाजार में invest करते है उन्होंने value investing के बारे में बहुत सुना होगा। क्योंकि शेयर बाजार के सभी धुरंधर invest करने से पहले value investing को जरूर ध्यान में रखते है। तो आप समझो की जो PE रेश्यो है वो ही value investing का आधार होती है। यह हमें बताती है की कोई कंपनी कितनी सस्ती और कितनी महंगी है। अब आप PE रेश्यो का महत्व तो समझ ही गए होंगे। इसीलिए अब हम PE रेश्यो के concept को आसान भाषा में समझते है।
PE रेश्यो क्या है –
PE रेश्यो = कंपनी के एक शेयर का वर्तमान मूल्य / EPS ( earning per share )
आप PE रेश्यो के फार्मूला से बहुत कुछ समझ गए होंगे। परन्तु चलो हम इसे विस्तार से समझते है। ताकि हमें इस महत्वपूर्ण रेश्यो के बारे कोई संदेह ना रहे। इस रेश्यो को समझने के लिए सबसे पहले हमें इसके पीछे के concept को समझना जरूरी है। PE रेश्यो मतलब price to earning रेश्यो मतलब आप किसी कम्पनी के एक share को खरीदने के लिए उसके एक share के प्रॉफिट से कितना गुना पैसा लगा रहे हो। वही अनुपात PE रेश्यो कहलाता है।
चलो अब इसे विस्तार से समझते है। मान लो tata motors के एक share की फिलहाल कीमत 400 रूपये है। और उसका प्रॉफिट प्रति share 40 रूपये है। तो tata motors की PE रेश्यो 400/40=10 है। मतलब हम tata motors के एक शेयर को खरीदने के लिए उसके एक शेयर के प्रॉफिट से 10 गुना ज्यादा पैसा दे रहे है। अब अगर यही शेयर 600 रूपये का हो जाता है और प्रॉफिट उतना ही मतलब 40 ही रहता है तो इसका PE 600/40=15 हो जायेगा। मतलब PE ज्यादा हो गया है और शेयर महंगा हो गया है। अब लोगों की उम्मीदें कम्पनी से ज्यादा हो गई है तभी तो वो इसके शेयर को ज्यादा कीमत पर खरीदने को तैयार हो गए है।
अब हम इसको ज्यादा विस्तार से समझते है किसी भी कम्पनी का PE रेश्यो कैसे निकालते है। सबसे पहले हम कम्पनी की total वैल्यूशन देखते है। जैसे की tata motors की total वैल्युएशन 40000000 है और इसके total शेयर 100000 है तो हम इसकी total वैल्यूशन को total शेयर से भाग कर देंगे जिससे उसके एक शेयर की कीमत निकल आएगी जैसे की – 40000000/100000= 400
अब EPS निकलने के लिए इसका एक साल का प्रॉफिट देखते है और उसको total शेयर से भाग दे देते है जैसे – tata motors का प्रॉफिट 4000000 है तो इसको total शेयर से भाग कर देंगे। जैसे 4000000/100000=40 मतलब इसका एक शेयर से होने वाला प्रॉफिट 40 है।
अब इसका PE रेश्यो होगा = एक शेयर का current price / EPS ( एक शेयर से होने वाला प्रॉफिट )। मतलब हमारा PE रेश्यो होगा = 400/40=10
EPS ( earning per share ) क्या होता है –
किसी भी एक शेयर पर किसी कम्पनी को एक वित्तीय वर्ष में जितना लाभ होता है वही EPS कहलाता है।
PE रेश्यो कितना होना चाहिए –
अब समझते है जैसे हम x कम्पनी में 1000 रूपये लगाते है और शेयर बाजार में पीई क्या है हमें 100 रूपये का प्रॉफिट होता है तो हमारा PE रेश्यो – 1000/100=10 होगा। मतलब हमें 1 रुपया कमाने के लिए 10 रूपये invest करने पड़े। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है की किसी भी कम्पनी में 1 रुपया कमाने के जितने पैसे हमें लगाने पढ़ते है वही उस कम्पनी का PE रेश्यो कहलाता है। आमतौर पर शेयर बाजार में PE रेश्यो 10 से 30 तक लिया जाता है। हालांकि PE रेश्यो 10 से कम और 30 से ज्यादा भी हो सकता है परन्तु यह ज्यादातर 10 से 30 के बीच ही माना जाता है। किसी भी कम्पनी का PE रेश्यो जितना कम हो उतना अच्छा माना जाता है। इसे समझना आसान है की 1 रुपया कमाने के लिए 10 रूपये लगाना ज्यादा बेहतर है या 20 रूपये। इसीलिए सभी समझदार इन्वेस्टर कम PE वाली कम्पनीयों में invest करना ज्यादा अच्छा समझते है। मगर PE के साथ – साथ बहुत से दूसरे factor भी है जिनको हमें पैसा invest करते समय ध्यान में रखना चाहिए। जिनके बारे में हम दूसरे articles में discuss करेंगे।
शेयर बाजार में PE रेश्यो का महत्व –
PE रेश्यो क्या है ! इतना तो आप समझ ही गए होंगे की शेयर बाजार में PE रेश्यो का कितना बड़ा महत्व है। हर समझदार इन्वेस्टर invest करने से पहले PE रेश्यो का सहारा लेता है। जिस भी कंपनी का जितना भी कम PE होता है उसमे invest करना उतना ही अच्छा माना जाता है। PE रेश्यो को value investing का मुख्य स्तम्भ माना जाता है। हम किसी भी कम्पनी का PE रेश्यो देखकर उस कम्पनी के बारे में बहुत कुछ जान सकते है।
Induvisual कम्पनी के अलावा शेयर बाजार का PE भी होता है जो की प्रत्येक इन्वेस्टर को invest करने से पहले जरूर देखना चाहिए। ज़ब भी बाजार में enter करने के लिए बाजार का PE जितना भी कम हो उतना अच्छा होता है। निफ़्टी – फिफ्टी की 50 कम्पनीयो का PE check करने के लिए आप NSE की ऑफिसियल साइट पर जा सकते हो।
मल्टीबैगर और पेनी स्टॉक से आपको भी कमाने हैं लाखों, जानिए अपनानी होगी कौन सी रणनीति
पिछले कुछ समय से आप सुन रहे होंगे कि कैसे बेहद सस्ते शेयर्स ने एक साल के भीतर निवेशकों को लाखों रुपए का रिटर्न दिया. एक लाख रुपए से 50 -60 लाख रुपए से भी ज़्यादा का रिटर्न मिला है। सोचा है ऐसे स्टॉक्स.
पिछले कुछ समय से आप सुन रहे होंगे कि कैसे बेहद सस्ते शेयर्स ने एक साल के भीतर निवेशकों को लाखों रुपए का रिटर्न दिया. एक लाख रुपए से 50 -60 लाख रुपए से भी ज़्यादा का रिटर्न मिला है। सोचा है ऐसे स्टॉक्स को लोग कैसे खोजते होंगे? आइए हम अप्पको बताते हैं कंपनी कि कौन सी बातें को देखकर बड़े निवेशक पैसा लगने के बारे में सोचते हैं। उनमेंसे ही कुछ स्टॉक उनको बड़ा प्रॉफिट दिलाते हैं। आप स्टॉक खरीदने के लिए सही कीमत को कैसे पहचानते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनसे निवेशक अक्सर हैरान होते हैं, समझने कि कोशिश करते हैं-
आपकी अपनी समझ- बुद्धिमान निवेशक, आपकी समय सीमा, जोखिम सहनशीलता और विशिष्ट उद्देश्य आपको बेस्ट स्टॉक खोजने में मदद कर सकता है। अपने आसपास हो रही आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखें और अपने आंख और कान खुले रखें। इसमें "अंडरवैल्यूड स्टॉक" की पहचान करना शामिल है जो किसी भी कारण से अपनी वैल्यू से काफी कम कम मूल्य पर होगा।
अर्थव्यवस्था के संकेत- अच्छे स्टॉक चुनने का एक बेहतरीन तरीका है कि आप अर्थव्यवस्था के हालात पर नजर बनाए रखें। भविष्य में आने वाली टेक्नोलॉजी या इंडस्ट्री के बारे में आभास लगा सकें। ट्रेंड से बाहर हो रहे उद्योगों में पैसा लगाने से बच सकें।
शेयर बाजार के अंडरडॉग्स- कुछ गैर-लोकप्रिय कंपनियां बिक्री और मुनाफे में वृद्धि दिखाती हैं, लेकिन उनके शेयर की कीमतें नहीं बढ़ती हैं। ये कंपनियां व्यापारियों और निवेशकों द्वारा समान रूप से ध्यान नहीं देती हैं और इसलिए उनके स्टॉक उनके प्रदर्शन की वृद्धि के बावजूद सस्ती कीमतों पर उपलब्ध हैं। इसलिए, यदि किसी कंपनी ने पिछली तीन तिमाहियों में लाभ में 20% की वृद्धि की है, लेकिन स्टॉक की कीमत बिल्कुल नहीं बढ़ी है या केवल 1-10% की वृद्धि हुई है, तो यह एक अंडरवैल्यूड स्टॉक है। इनके बारे में रिसर्च करिए।
पी/ई का कम अनुपात: पी/ई से स्टॉक के मौजूदा शेयर मूल्य के रूप में की जाती है। पीई अनुपात निवेशकों के लिए निवेश निर्णयों को आधार बनाने के लिए एक प्रभावी निर्धारण कारक रहा है। अगर पीई अनुपात अधिक होता है, तो निवेशक यह मानते हैं कि स्टॉक ओवरवैल्यूड है और शेयरों को बेचना या खरीदने से बचना चाहिए। यदि शेयर का अंडरवैल्यूड होत है, तो निवेशक उन्हें अयोग्य मूल्य का दोहन होने पर मुनाफे का दावा करने के लिए कम दरों पर खरीदते हैं।
अपने ही सेक्टर कि कंपनियों से पीछे होना- एक कंपनी के शेयर की कीमत कई कारणों से उसी सेक्टर कि दूसरी कंपनियों के तुलना में कम हो सकती है। कीमत कभी-कभी इतनी कम हो जाती है कि स्टॉक का मूल्यांकन कम हो जाता है। आप एक विकल्प के लिए अपने स्क्रीनर की जांच कर सकते हैं जो आपको अलग-अलग स्टॉक और स्टॉक इंडेक्स के मुकाबले अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्टॉक मूल्य इतिहास की तुलना करने देता है। अगर कंपनी कि वित्तीय स्थिति काफी मजबूत है लेकिन प्राइस कम है तो इनको नज़र में रखिए।
कीमत/आय ग्रोथ (पीईजी) का कम अनुपात: पी/ई की तुलना में पीएईजी को अधिक सटीक माना जाता है, पीईजी एक स्टॉक की कीमत, प्रति शेयर आय (ईपीएस) और के बीच कई पैरामीटर पर उनका मूल्यांकन करने का टूल है। यदि अनुपात 1 से कम है (उदाहरण के लिए, 10 का पी/ई और 15% की अनुमानित वृद्धि, तो हमें पीईजी अनुपात 0.66), तो यह अच्छा है। लेकिन इस बात को ध्यान में रखें ये भी अनुमान हैं। रिसर्च और करें।
डिविडेंड यील्ड- इसको अधिकांश निवेशक अनदेखा करते हैं - यदि किसी कंपनी के डिविडेंड भुगतान की दर उनके प्रतिस्पर्धियों से अधिक है, तो यह संकेत है कि शेयर अंडरवैल्यूड हो सकता हैं। सोचें अगर कंपनी वित्तीय रूप से अस्थिर नहीं है और भविष्य में कोई रिस्क नहीं तो स्टॉक की कीमत में बढ़ोतरी की संभावना है।
मार्केट-टू-बुक रेशियो: मार्केट टू बुक रेशियो (जिसे प्राइस टू बुक रेशियो भी कहा जाता है), एक वित्तीय वैल्यूएशन मेट्रिक है जिसका इस्तेमाल कंपनी के बुक वैल्यू के सापेक्ष मौजूदा मार्केट वैल्यू का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग किसी फर्म की मार्केट कैपिटलाइजेशन की उसकी बुक वैल्यू के साथ तुलना करने के लिए होता है। पी/बी रेशियो किसी कंपनी की मार्केट वैल्युएशन की माप की उसकी बुक वैल्यू की तुलना में माप करता है। किसी इक्विटी की मार्केट वैल्यू पारंपरिक रूप से कंपनी की बुक वैल्यू से ऊंची होती है। पी/बी रेशियो का उपयोग वैल्यू इन्वेस्टरों द्वारा संभावित निवेशों की पहचान करने के लिए किया जाता है। 1 से नीचे के पी/बी रेशियो ठोस निवेश समझे जाते हैं।
हालांकि, ध्यान रखें कि सिर्फ ये मेट्रिक्स ही सभी पैरामीटर नहीं हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि स्टॉक बेहतरीन निवेश हो सकता है। लेकिन हां ये आपको स्टॉक का मूल्यांकन करने में मददगार साबित होंगे। किसी कंपनी के बारे में अधिकतम रिसर्च आपको मल्टीबैगर स्टॉक खोजने में माद्दा करेगा और आपको लाखों रुपए का रिटर्न दे सकता है।
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न्यूनतम अंक: 1
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