इस बोर्ड के गठन को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती भी दी गयी ही जिसे दिसंबर,2013 में हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था एवं उक्त बोर्ड के गठन को एवं उसके द्वारा पीजीटी समेत सभी वर्गों के टीचरो की चयन प्रक्रिया को सही ठहराया था. हालांकि जब अक्टूबर, 2014 में हरियाणा में भाजपा के नेतृत्व में खट्टर सरकार बनी तो दिसंबर, 2014 में एक अध्यादेश जारी करवाकर उक्त बोर्ड को समाप्त करवा दिया था। बाद दलालों की गतिविधियों के दायरे में इस अध्यादेश को विधानसभा में विधेयक के रूप में पारित करवाया गया एवं अप्रैल, 2015 में इसे राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हो गयी। उसके दो महीने बाद 18 जून 2015 को हरियाणा सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव (अब मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव ) डीएस ढेसी द्वारा एक गजट दलालों की गतिविधियों के दायरे नोटिफिकेशन जारी कर हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के कार्यो में संशोधन कर हरियाणा के राजकीय स्कूलों में पीजीटी सहित ग्रुप बी और ग्रुप सी सभी टीचरो की चयन प्रक्रिया आयोग को प्रदान कर दी गयी एवं तब से एचएसएससी ही ऐसे सभी पदों के लिए चयन करता आया है परन्तु हेमंत का कानूनी मत है कि अगर हरियाणा सरकार ने उक्त पीजीटी स्कूल टीचरो, जो ग्रुप बी अर्थात एचईएस-2 होने के कारण गज़ेटेड पद हैं, उनके चयन के लिए हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग को कानूनन अधिकृत करना है, तो राज्य सरकार के कार्मिक विभाग को एक और नोटिफिकेशन जारी कर पीजीटी ग्रुप बी पदों को हरियाणा लोक सेवा आयोग के दायरे से बाहर भी निकालना होगा।
आर्थिक भूगोल क्या है? आर्थिक भूगोल की परिभाषा, विषय क्षेत्र, प्रकृति, महत्व
आर्थिक भूगोल (aarthik bhugol) मानव भूगोल की वह महत्वपूर्ण शाखा है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के धरातल पर निवास करने वाले मानव की आर्थिक क्रियाओ और उनकी क्षेत्रीय भिन्नताओं और विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है! इसके अतिरिक्त मानवीय क्रियाओं का स्थानिक वितरण अथवा उनकी आवश्यकता तथा संबंधों का भी अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है!
बैंगस्टन और वॉनरैयन के अनुसार “आर्थिक भूगोल विश्व के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले आधारभूत स्त्रोतों की भिन्नता का पर्यवेक्षण करता है! यह विश्व के भिन्न देशों और प्रदेशों में आर्थिक विकास के अन्तरों का अध्ययन करता है! इसके अंतर्गत होने यातायात व व्यापारिक मार्गों और व्यापार का अध्ययन किया जाता है जो कि भौतिक परिस्थितियों द्वारा प्रभावित होते है”!
आर्थिक भूगोल की प्रकृति (aarthik bhugol ki prakriti) –
आर्थिक भूगोल की प्रकृति विविध, बहुरूपी एवं व्यापक है! इसमें देश एवं काल के अनुसार क्षेत्रवार प्रत्येक बार निरंतर परिवर्तन आते रहे हैं! इसमें संसाधन उपलब्धि के स्तर एवं उन पर निर्भरता के स्वरूप के अध्ययन पर विशेष महत्व रहा है! इसी कारण आर्थिक भूगोल का विषय क्षेत्र बहुत व्यापक है!
भूतल पर न तो जैव दलालों की गतिविधियों के दायरे एवं अजैव प्राकृतिक संसाधन का वितरण समरूपी हैं, न हीं मानव द्वारा विकसित द्वितीयक, तृतीयक स्तर की व्यवसायिक सुविधा भूतल पर समान रूप से विकसित है! इसी कारण देशवार आर्थिक विकास के अंतर संबंधों में न सिर्फ समंजन की विविधता पाई जाती है बल्कि परिणामी आर्थिक विकास एवं समृद्धि के स्वरूप के स्तर में भी भिन्नताएं पाई जाती है!
प्रारंभ में आर्थिक भूगोल को पहले मानव भूगोल एवं बाद में सामाजिक भूगोल की मुख्य शाखा माना गया हैं! वर्तमान में तो आर्थिक भूगोल स्वयं भूगोल की वृहद शाखा है! इसमें मानवीकरण के पहलुओं के अनुसार अनेक शाखाएं एवं उसी के अनुसार इसके व्यापक क्षेत्र में विविधता पाई जाती है!
आर्थिक भूगोल का विषयक्षेत्र (aarthik bhugol ki vishay vastu) –
पृथ्वी पर मानव की आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र बहुत व्यापक है! वर्तमान दलालों की गतिविधियों के दायरे में इसमें बहुत सारी आर्थिक क्रियाएं सम्मिलित की जाती है!
इन क्रियाओं के अंतर्गत प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग होता है! कृषि कार्य में मिट्टी का सीधा उपयोग फसलें लगाने में के लिए किया जाता है!
इस प्रकार जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना, खानों से कोयला,लोहा आदि निकालना, वनों से लकड़ियाँ काटना अथवा पशुओं से ऊन चमड़ा, बाल, खाले, हड्डियां आदि प्राप्ति करना प्राथमिक उत्पादन क्रियाएं है! इनमें संबंधित उद्योगों प्राथमिक उद्योग कहा जाता है; जैसे – कृषि करना, खाने खोदना, मछली पकड़ना, आखेट करना, वस्तुओं का संचय करना, वन संबंधी उद्योग आदि!
(2) द्वितीयक उत्पादन क्रियाएं-
इन क्रियाओं के अंतर्गत प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग नहीं किया जाता वरन् उनको साफ, परिष्कृत अथवा रूप- परिवर्तित कर उपयोग के योग्य बनाया जाता है! इससे उनके मूल्य में वृद्धि होती है!
(3) तृतीयक उत्पादन क्रियाएं-
इन क्रियाओं के अंतर्गत वे सभी क्रियाएं आती है जो प्राथमिक अथवा गोण उत्पादन की वस्तुओं को उपभोक्ता, उद्योगपति तक पहुंचाने से संबंधित होती है! इस प्रकार की क्रियाओं के अंतर्गत वस्तुओं का परिवहन, संचार और संवादवाहन, वितरण एवं संस्थाओं और व्यक्तियों की सेवाएं; जैसे – व्यापारी, दलाल, बैंक, बीमा, सामाजिक सेवाएं तथा विनिमय सम्मिलित की जाती है!
(1) यह हमें ऐसे प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, प्राप्ति और वितरण आदि दलालों की गतिविधियों के दायरे से परिचित कराता है जिनके द्वारा वर्तमान में किसी भी देश की आर्थिक उन्नति हो सकती है!
(2) आर्थिक भूगोल के अध्ययन से यह ज्ञात हो सकता है कि विशेष जलवायु के अनुसार किसी देश की आवश्यकता की पूर्ति के लिए कच्चा माल, भोज्य पदार्थ अथवा यंत्र आदि कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं!
(3) पृथ्वी के गर्भ में कौन कौन से दलालों की गतिविधियों के दायरे खनिज पदार्थ छिपे पड़े हैं, इसका पता लगाकर वहां पर अनेक प्रकार के खनिजों पर आधारित उद्योग की स्थापना की जा सकती है! इस प्रकार उद्योगों की दृष्टि से आर्थिक भूगोल का विषय अत्यंत उपयोगी है!
उपयुक्त नोटिफिकेशन द्वारा ही गज़ेटेड पद हो सकते हैं HPSC के दायरे दलालों की गतिविधियों के दायरे से बाहर: एडवोकेट हेमंत
चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी): हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी ) द्वारा बीती फरवरी में प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग के लिए पोस्ट-ग्रेजुएट टीचर (पीजीटी) (संस्कृत विषय ) के 500 से ऊपर पदों की चयन-प्रक्रिया हेतु विज्ञापन जारी किया गया. इससे पूर्व वर्ष 2019 में विभिन्न विषयो के करीब 3800 पीजीटी के लिए विज्ञापन जारी हुआ हालांकि वह चयन प्रकिया अभी तक आरम्भ दलालों की गतिविधियों के दायरे नहीं हुई है चूँकि आयोग और स्कूल शिक्षा विभाग में पदों की वास्तविक संख्या को लेकर पत्राचार चल रहा है। ज्ञात रहे कि बीते कुछ वर्षो से एचएसएससी ही उक्त पीजीटी पदों के लिए चयन करता रहा है जिस पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक एडवोकेट हेमंत कुमार ने प्रश्न चिन्ह उठाया है एवं उन्होंने इस विषय पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव और स्कूल शिक्षा विभाग के प्रशासनिक सचिव और निदेशक आदि से उपयुक्त कार्यवाही करने की मांग की है.
समूचा काला धन आखिर कहाँ गया ?
काला धन वास्तव में एक प्रवाह है, एक प्रक्रिया है जो बिना लेखे-जोखे वाली आमदनी (जरूरी नहीं कि वह अवैध ही हो) को पैदा करती है और कर वसूलने वालों की निगाह से छिपी रहती है. लेकिन किसी खास समय में हम इस आमदनी की कुल मात्रा के बारे में धारणा बना सकते हैं और उसके परिमाण को मापने की कोशिश भी कर सकते हैं. आप काला धन को किसी भी दृष्टिकोण से देखें, नोटबंदी ने इस मामले में केवल नगण्य और क्षणिक (और कई तरीकों से उलटा नतीजा देने वाले) परिणाम पैदा किये हैं.
इस 'साहसिक कदम' के बारे में सरकारी तौर पर सुखानुभूति पैदा करने की कोशिश के पहले चरण के बाद, सरकार और मीडिया में मोदी के ढोल पीटने वालों ने घोषणा की कि रद्द किये हुए नोटों का बड़ा हिस्सा चलन से बाहर हो जायेगा. इसके चलते (क) अधिकांश काला धन नष्ट हो जायेगा, (ख) काला धन की जमाखोरी करने वालों को भारी नुकसान होगा, यानी उनको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और आर्थिक रूप से उनका सफाया ही हो जायेगा, और (ग) वापस न आने वाले नोटों के चलते रिजर्व बैंक की देनदारी घट जायेगी और इस प्रकार राष्ट्रीय खजाने को भारी मुनाफा होगा जिसका इस्तेमाल सार्वजनिक कल्याण के लिये किया जायेगा.
उपयुक्त नोटिफिकेशन द्वारा ही गज़ेटेड पद हो सकते हैं HPSC के दायरे से बाहर: एडवोकेट हेमंत
चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी): हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी ) दलालों की गतिविधियों के दायरे द्वारा बीती फरवरी में प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग के लिए पोस्ट-ग्रेजुएट टीचर (पीजीटी) (संस्कृत विषय ) के 500 से ऊपर पदों की चयन-प्रक्रिया हेतु विज्ञापन जारी किया गया. इससे पूर्व वर्ष 2019 में विभिन्न विषयो के करीब 3800 पीजीटी के लिए विज्ञापन जारी हुआ हालांकि वह चयन प्रकिया अभी तक आरम्भ नहीं हुई है चूँकि आयोग और स्कूल शिक्षा विभाग में पदों की वास्तविक संख्या को लेकर पत्राचार चल रहा है। ज्ञात रहे कि बीते कुछ वर्षो से एचएसएससी ही उक्त पीजीटी पदों के लिए चयन करता रहा है जिस पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एक एडवोकेट हेमंत कुमार ने प्रश्न चिन्ह उठाया है एवं उन्होंने इस विषय पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव और स्कूल शिक्षा विभाग के प्रशासनिक सचिव और निदेशक आदि से उपयुक्त कार्यवाही करने की मांग की है.
एसईसीएल की पेलमा ओपन कोयला खदान की वन भूमि व मोरगा पहाड़ बचाने की जद्दोजहद ….. दलाल नुमा लोगों के आगे हारते गरीब आदिवासी …..आदिवासी परंपरा, प्राचीन देव स्थल व जैव विविधता के संरक्षण के लिए
रायगढ़।
जिले के तमनार ब्लॉक में एसईसीएल पेलमा ओपन कोयला खदान के लिए सरकारी प्रक्रिया जहां एक तरफ जोरों पर है वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदाय जल जंगल जमीन सहित प्राचीन देव स्थल को बचाने व अपनी परम्परागत आजीविका को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
एसईसीएल के पेलमा ओपन कोयला खदान के लिए 8 गांव की निजी राजस्व, वन व आरक्षित वन की 2035.935 हेक्टेयर भूमि जाने वाली है। यानी लगभग 5 हजार एकड़ से अधिक भूमि जो अब तक हराभरा और वन्यजीवों सहित दलालों की गतिविधियों के दायरे जैव विविधता से भरा पड़ा है दूर दूर तक वीरान हो जाएगा जहां धूल गुबार और कोयले का डस्ट नजर आएगा। खास बात ये है कि इसमें रिजर्व फारेस्ट की 19 हेक्टयर यानि करीब 47 एकड़ में फैला रिजर्व फारेस्ट का भी समूल नाश हो जाएगा। इतना ही नहीं एसईसीएल के प्रस्तावित ओपन माइंस के दायरे में आने वाले वन क्षेत्र में वन्य जीवों की बहुलता है। जिसमें भालू चीतल सांभर सहित कई प्रकार के वन्य जीवों का वास स्थल भी है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 392