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पूर्व चेतावनी प्रणाली से उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया महामारी का चार महीने पहले पूर्वानुमान
एक मादा एनोफ़ेलीज़ सटेपैनजी मच्छर, जो पश्चिमी भारत में मलेरिया फैलाता है। फोटो: केदार भिडे
एन आर्बर – उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान का इस्तेमाल कर हजारों मीलों दूर उत्तर – पश्चिमी भारत में चार महीने पूर्व मलेरिया महामारी की सही भविष्यवाणी की जा सकती है, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की सैद्धांतिक परिस्थिति विज्ञानशास्री और उनके सहयोगियों ने पाया।
जुलाई में सामान्य से अधिक ठंडी उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक समुद्र सतह के तापमान से मानसून वर्षा और उत्तर पश्चिमी भारत के एकाधिक समय सीमा विश्लेषण शुष्क और अर्ध – शुष्क क्षेत्रों (विशाल थार रेगिस्तान सहित)में मलेरिया महामारी, दोनों में वृद्धि हुई । यह निष्कर्ष मर्सिडीज पेसकुअाल और उनके सहयोगी ने ३ मार्च को ऑनलाइन जर्नल नेचर जलवायु परिवर्तन में प्रकाशित किया।
पिछले मलेरिया के प्रकोपों की भविष्यवाणी करने के प्रयास काफी हद तक मानसून सीजन के दौरान संपूर्ण वर्षा पर केंद्रित थे, जिससे बीमारी फैलाने वाले एनोफ़ेलीज़ मच्छरों के संभावित प्रजनन स्थलों का पता चलता था। इस पद्धति से एक महीने पहले प्रकोप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
इस नये उपकरण से प्रभावशाली रूप में चेतावनी समय बढ़ जाता है, जिससे इस क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये उपचार तैयारियों और अन्य रोग की रोकथाम रणनीतियों बनाई जा सकती है।
उदाहरण के तौर पर इनडोर कीटनाशक छिड़काव का व्यापक रूप से इस्तेमाल करके समय में नियंत्रण किया जा सकता है।
“यह जलवायु सम्बन्ध जो हमने अनावृत किया है मलेरिया के निदेशक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है,” पेसकुअाल ने कहा। “हमें आशा है कि यह निष्कर्ष एक पूर्व चेतावनी प्रणाली के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा।”
भारत में लगभग खत्म होने के बाद, मलेरिया फिर से १९७० दशक के बाद उभरा। अनुमान है कि भारत में वार्षिक ९ लाख के आसपास लोग मलेरिया के चपेट में अाते है।
इस महामारी के रूप में मलेरिया का भौगोलिक वितरण मुख्य रूप से सीमांत शुष्क उत्तर पश्चिमी भारत जैसे स्थानों पर होता हैं जहां समय-समय पर पर्यावरण की स्थिति एनोफ़ेलीज़ मच्छरों को बनाए रखने के लिए उपयुक्त होती हैं।
उत्तर पश्चिम भारत के कच्छ जिले का शुष्क परिदृश्य जहां मलेरिया महामारी मानसून की बारिश, और क्षेत्रीय वर्षा के प्रभाव के तहत होता हैं, अौर उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक महासागर में समुद्री सतह के तापमान के साथ जुड़ा हुआ है। फोटो: मर्सिडीज पेसकुअाल मलेरिया के खतरे के लिये अधिक समय-सीमा और सटीक भविष्यवाणी की इच्छा से प्रेरित होकर, पेसकुअाल और उसके सहयोगियों ने उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया घटना के महामारी के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया और सांख्यिकीय और कंप्यूटर जलवायु मॉडल का इस्तेमाल कर समुद्र की सतह के तापमान, उत्तर पश्चिम में मानसून की बारिश और वहाँ मलेरिया महामारी के बीच संभावित संबंध का परीक्षण किया।
ये कहते हैं कि अधिकतर उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया महामारी, अक्टूबर या नवंबर में चोटी पर होती है, जब पूर्ववर्ती गर्मियों में मानसून के मौसम में वर्षा आवश्यक सीमा के बराबर या बारिश संभाव्यतः से अधिक होती है जो एनोफ़ेलीज़ मच्छरों के विकास मे सहायता करती है।
शोधकर्ताओं ने वैश्विक समुद्र की सतह के तापमान और उत्तर पश्चिमी भारत के बीच मलेरिया महामारी संबंध को देखा। उनके अनुसार अफ्रीका के पश्चिमी अोर उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक, जहां एकाधिक समय सीमा विश्लेषण एकाधिक समय सीमा विश्लेषण सामान्य से अधिक ठंडी तापमान से उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया और मानसून वर्षा दोनो में वृद्धि हुई।
जुलाई महीने में दक्षिण अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान भारत में मलेरिया प्रकोपों के भविष्यवाणी में सटीक साबित हुये। १९८५ और २००६ के बीच इस क्षेत्र में मलेरिया महामारी की समीक्षा कर शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्री तापमान से ११ महामारी साल में से नौ बार सही और गैर महामारी साल में १५ साल मे से १२ बार सही भविष्यवाणी की। भारत मे हाल के दशकों में इस क्षेत्र और समय के लिए उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक बारिश, और वर्षा के माध्यम से मलेरिया पर प्रमुख भूमिका निभाते हैं ,” पेसकुअाल ने कहा।
मलेरिया प्लाज्मोडियम परजीवी से, जो संक्रमित मच्छरों के काटने से, फैलते है। शरीर में परजीवी कलेजे में वृद्धि कर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
इस पेपर में पेसकुअाल के सह लेखक महासागर भूमि वायुमंडल अध्ययन के बी ए केश, नई दिल्ली में राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान के आर धीमान, लंदन स्वच्छता और ट्रॉपिकल मेडिसिन स्कूल के एम.जे. बौमा, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन पारिस्थितिकीय और विकासवादी जीवविज्ञान विभाग के ए बैजं थे।
इस काम को नई दिल्ली के राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन ग्राहम स्थिरता संस्थान, और अमेरिका के राष्ट्रीय समुद्रीय और वायुमंडलीय प्रशासन, राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन और नासा से अनुदान मिला। राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान केंद्र ने उच्च प्रदर्शन अभिकलन सहायता प्रदान की है।
कक्षा 9 वीं से नीट की तैयारी कैसे करें (How to prepare for NEET from Class 9th in Hindi)
कक्षा 9 वीं से नीट की तैयारी कैसे करें - हर साल, 15 लाख से अधिक उम्मीदवार डॉक्टर बनने के अपने सपने के साथ राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के लिए उपस्थित होते हैं। हालांकि, उनमें से केवल आधे ही भारत की इस सबसे बड़ी चिकित्सा प्रवेश परीक्षा में सफल हो पाते हैं। इसलिए, कक्षा 9वीं से नीट 2022 के लिए अपनी तैयारी शुरू करना उम्मीदवारों के लिए वास्तविक विज्ञान के क्षेत्र में पहला कदम होगा, क्योंकि यही कॅरियर चुनने का सही समय होता है।
Latest: नीट 2022 आवेदन पत्र जारी कर दिया गया है।
Latest Updates for NEET
यूपी नीट काउंसलिंग की तारीख में विस्तार किया गया, अब 29 अक्टूबर तक किया जा सकता है पंजियन।
एमसीसी ने न्यायालय की अवमानना से बचने के लिए राज्य नीट काउंसलिंग प्राधिकरणों को तय समय-सीमा में नीट काउंसलिंग 2022 प्रक्रिया संपन्न करने के निर्देश दिए।
क्लास 9 से नीट की तैयारी शुरू करने से उम्मीदवारों को अपने मूल सिद्धांतों (विषयों की मूल अवधारणा) को समझने में मदद मिलेगी। कक्षा 9वीं से नीट की तैयारी करने से उम्मीदवारों को भविष्य के उन पाठ्यक्रमों में बेहतर पकड़ बनाने में मदद मिलेगी, जिनकी उन्हें नीट के लिए अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। कक्षा 9 से नीट 2022 की तैयारी के दौरान बेसिक कॉन्सेप्ट तैयार होने से कक्षा 12 के बोर्ड परीक्षाओं के दौरान पड़ने वाला अतिरिक्त दबाव कम रहेगा। कक्षा 9वीं से नीट 2022 की तैयारी करने वाले छात्रों को अपनी तैयारी के रणनीति को बेहतर बनाने के लिए अधिक समय मिलता हैं। डॉक्टर बनने के इच्छुक उम्मीदवार बेहतर रणनीति, टिप्स, अनुशंसित पुस्तकों, प्रासंगिक विषयों और अन्य विवरणों के लिए कक्षा 9 वीं से नीट 2022 की तैयारी के बारे में हिंदी के इस लेख को पूरा पढ़ सकते हैं।
कक्षा 9 वीं से नीट 2022 की तैयारी कैसे करें - सिलेबस को अच्छे से जानें
कक्षा 9 से नीट 2022 की तैयारी के लिए, उम्मीदवारों को भौतिकी, रसायन विज्ञान, और जीवविज्ञान (वनस्पति विज्ञान और जूलॉजी) के बेसिक कांसेप्ट को अच्छे से समझना होगा। इससे कक्षा 11 और 12 में उनको मदद मिलेगी, चूँकि नीट 2022 सिलेबस 11वीं और 12वीं कवर किए गए विषयों पर आधारित होता है इससे नीट की तैयारी भी आसानी से हो जाएगी। उम्मीदवार यहां दिए गए लिंक से पूर्ण नीट सिलेबस 2022 की जांच कर सकते हैं।
कक्षा 9 वीं से नीट 2022 की तैयारी कैसे करें - एक व्यापक अध्ययन योजना बनाएं
सिलेबस की पूरी जानकारी के बाद, कक्षा 9 से नीट 2022 की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों को एक व्यापक अध्ययन समय सारणी तैयार करनी चाहिए। नीट 2022 सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा में से एक है। इसके लिए बहुत अधिक ध्यान देने, अनुशासन से पढ़ाई करने के साथ ही सैद्धांतिक एवं प्रैक्टिकल के टॉपिक्स के गहन विश्लेषण की आवश्यकता होती है। एक प्रभावी अध्ययन योजना बनाने में उम्मीदवारों को कक्षा 9 से नीट 2022 की तैयारी करने में मदद मिलेगी, जो उनके बोर्ड परीक्षा की तैयारी में भी मदद करेगा।
कक्षा 9 वीं से नीट 2022 की तैयारी कैसे करें - सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों की मदद लें
कक्षा 9 वीं से नीट की तैयारी के दौरान, छात्रों के लिए अपनी एनसीईआरटी पुस्तकों की मदद लेना वास्तव में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें सभी सूत्र और थ्योरी को जगह मिली होती है। नीट प्रवेश परीक्षा में प्रश्न कक्षा 11 और 12 के एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं। बेशक, उम्मीदवारों को कक्षा 9 की विज्ञान के लिए एनसीईआरटी किताबों को समझने और अच्छे से पढ़नी चाहिए। एनसीईआरटी की किताबें प्रत्येक सेक्शन से जुड़े बेसिक कांसेप्ट को स्पष्ट करती है।
एक बार NCERT सिलेबस पूरा हो जाने के बाद, जब एकाधिक समय सीमा विश्लेषण छात्रों को अपनी तैयारी पर भरोसा होने लगे, तब उनको प्रत्येक सेक्शन के लिए NEET 2022 की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों से रिवीजन करना चाहिए। इन पुस्तकों को 600+ अंकों के साथ NEET क्रैक करने के लिए सबसे अच्छी अध्ययन सामग्री में से एक माना जाता है। कक्षा 9 वीं से नीट की तैयारी के लिए और तैयारी को अधिक स्पष्ट करने के लिए, उम्मीदवार विज्ञान विषयों के लिए निम्नलिखित पुस्तकों में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
पूर्व चेतावनी प्रणाली से उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया महामारी का चार महीने पहले पूर्वानुमान
एक मादा एनोफ़ेलीज़ सटेपैनजी मच्छर, जो पश्चिमी भारत में मलेरिया फैलाता है। फोटो: केदार भिडे
एन आर्बर – उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान का इस्तेमाल कर हजारों मीलों दूर उत्तर – पश्चिमी भारत में चार महीने पूर्व मलेरिया महामारी की सही भविष्यवाणी की जा सकती है, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की सैद्धांतिक परिस्थिति विज्ञानशास्री और उनके सहयोगियों ने पाया।
जुलाई में सामान्य से अधिक ठंडी उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक समुद्र सतह के तापमान से मानसून वर्षा और उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क और अर्ध – शुष्क क्षेत्रों (विशाल थार रेगिस्तान सहित)में मलेरिया महामारी, दोनों में वृद्धि हुई । यह निष्कर्ष मर्सिडीज पेसकुअाल और उनके सहयोगी ने ३ मार्च को ऑनलाइन जर्नल नेचर जलवायु परिवर्तन में प्रकाशित किया।
पिछले मलेरिया के प्रकोपों की भविष्यवाणी करने के प्रयास काफी हद तक मानसून सीजन के दौरान संपूर्ण वर्षा पर केंद्रित थे, जिससे बीमारी फैलाने वाले एनोफ़ेलीज़ मच्छरों के संभावित प्रजनन स्थलों का पता चलता था। इस पद्धति से एक महीने पहले प्रकोप का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
इस नये उपकरण से प्रभावशाली रूप में चेतावनी समय बढ़ जाता है, जिससे इस क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये उपचार तैयारियों और अन्य रोग की रोकथाम रणनीतियों बनाई जा सकती है।
उदाहरण के तौर पर इनडोर कीटनाशक छिड़काव का व्यापक रूप से इस्तेमाल करके समय में नियंत्रण किया जा सकता है।
“यह जलवायु सम्बन्ध जो हमने अनावृत किया है मलेरिया के निदेशक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है,” पेसकुअाल ने कहा। “हमें आशा है कि यह निष्कर्ष एक पूर्व चेतावनी प्रणाली के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा।”
भारत में लगभग खत्म होने के बाद, मलेरिया फिर से १९७० दशक के बाद उभरा। अनुमान है कि भारत में वार्षिक ९ लाख के आसपास लोग मलेरिया के चपेट में अाते है।
इस महामारी के रूप में मलेरिया का भौगोलिक वितरण मुख्य रूप से सीमांत शुष्क उत्तर पश्चिमी भारत जैसे स्थानों पर होता हैं जहां समय-समय पर पर्यावरण की स्थिति एनोफ़ेलीज़ मच्छरों को बनाए रखने के लिए उपयुक्त होती हैं।
उत्तर पश्चिम भारत के कच्छ जिले का शुष्क परिदृश्य जहां मलेरिया महामारी मानसून की बारिश, और क्षेत्रीय वर्षा के प्रभाव के तहत होता हैं, अौर उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक महासागर में समुद्री सतह के तापमान के साथ जुड़ा हुआ है। फोटो: मर्सिडीज पेसकुअाल मलेरिया के खतरे के लिये अधिक समय-सीमा और सटीक भविष्यवाणी की इच्छा से प्रेरित होकर, पेसकुअाल और उसके सहयोगियों ने उत्तर एकाधिक समय सीमा विश्लेषण पश्चिमी भारत में मलेरिया घटना के महामारी के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया और सांख्यिकीय और कंप्यूटर जलवायु मॉडल का इस्तेमाल कर समुद्र की सतह के तापमान, उत्तर पश्चिम में मानसून की बारिश और वहाँ मलेरिया महामारी के बीच संभावित संबंध का परीक्षण किया।
ये कहते हैं कि अधिकतर उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया महामारी, अक्टूबर या नवंबर में चोटी पर होती है, जब पूर्ववर्ती गर्मियों में मानसून के मौसम में वर्षा आवश्यक सीमा के बराबर या बारिश संभाव्यतः से अधिक होती है जो एनोफ़ेलीज़ मच्छरों के विकास मे सहायता करती है।
शोधकर्ताओं ने वैश्विक समुद्र की सतह के तापमान और उत्तर पश्चिमी भारत के बीच मलेरिया महामारी संबंध को देखा। उनके अनुसार अफ्रीका के पश्चिमी अोर उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक, जहां सामान्य से अधिक ठंडी तापमान से उत्तर पश्चिमी भारत में मलेरिया और मानसून वर्षा दोनो में वृद्धि हुई।
जुलाई महीने में दक्षिण अटलांटिक महासागर की सतह के तापमान भारत में मलेरिया प्रकोपों के भविष्यवाणी में सटीक साबित हुये। १९८५ और २००६ के बीच इस क्षेत्र में मलेरिया महामारी की समीक्षा कर शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्री तापमान से ११ महामारी साल में से नौ बार सही और गैर महामारी साल में १५ साल मे से १२ बार सही भविष्यवाणी की। भारत मे हाल के दशकों में इस क्षेत्र और समय के लिए उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक बारिश, और वर्षा के माध्यम से मलेरिया पर प्रमुख भूमिका निभाते हैं ,” पेसकुअाल ने कहा।
मलेरिया प्लाज्मोडियम परजीवी से, जो संक्रमित मच्छरों के काटने से, फैलते है। शरीर में परजीवी कलेजे में वृद्धि कर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
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