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ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत

कभी ब्रिटेन ने भारत को बनाया था अपना औपनिवेशिक गुलाम, अब बज रही है बैंड!

याद करिए वो दौर जब भारत ब्रिटेन का औपनिवेशिक ग़ुलाम हुआ करता था, लंदन में बैठी ब्रितानिया सरकार ने जितना मुमकिन हो सका भारत को आर्थिक रूप से खोखला किया। कहा जाता था कि गंगा द्वारा भेजी गई चीजें सीधे लंदन के टेम्स नदी के किनारे जाकर निकलती थी अर्थात् गोरों ने इस कदर लूट मचा रखी थी कि भारत आर्थिक रूप से अपने घुटनो पर आ गया था। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो आर्थिक पंगुता से जूझ रहे भारत की दशा और दिशा दोनो ही निराश करने वाली थी, न तो औद्योगिक इकाइयां थी और न ही मूलभूत आधारभूत संरचनाएं, किंतु आज भारत ने इन सब चुनौतियों को पार पाते हुए जो कीर्तिमान स्थापित किया है वह जानकर वाक़ई हर हिंदुस्तानी को गर्व ज़रूर होगा।

दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत

दरअसल, अपने पुराने दशा से निकल कर भारत ने आज ब्रिटेन को अर्थव्यस्था के क्षेत्र में मात दे दी है। दुनिया के छठीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रेस में यूके भारत से पिछड़ गया है। ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। एक दशक पहले भारत सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में 11वें क्रम पर था, जबकि ब्रिटेन पांचवें नंबर पर था। ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 के अंतिम तीन माह में ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्‍व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। ये एनालिसिस अमेरिकी डॉलर पर आधारित है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों के अनुसार,भारत ने पहली तिमाही में अपनी बढ़त हासिल कर ली है। फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अमेरिका है। इसके बाद चीन, जापान और जर्मनी का नंबर आता है।

भारत की ग्रोथ के आगे चीन आसपास भी नहीं आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा है। अप्रैल-जून तिमाही की चीन की वृद्धि दर 0.4 प्रतिशत रही है। तमाम अनुमान बता रहे हैं कि सालाना आधार पर भी भारत के मुकाबले चीन पीछे रह आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा सकता है। एक तरफ़ जहां ब्रिटेन में जीवन यापन महंगा होने के कारण लोग परेशान हैं तो वही वर्ष 2022 के पहले तिमाही में 13.5% की विकास दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में बमपर उछाल देखी जा रही है। इसकी शुरुआत तो वर्ष 2014 से मध्यम रफ़्तार के साथ हो चुकी थी लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब जो आंकड़े हैं वहां भारत ब्रिटेन को पटखनी देते हुए दिखायी दे रहा है। रिपोर्ट्स की माने तो इस वर्ष भारत की विकास दर 7% रहने की उम्मीद है, जिसकी झलक अभी से देखने को मिल रही है। ब्रिटेन की बात करें तो उसकी मुश्किलें आने वाले समय में और बढ़ सकती है। यूके की जीडीपी फिलहाल 3.19 लाख करोड़ डॉलर की है। 7 प्रतिशत की अनुमानित ग्रोथ के साथ भारत के इसी वर्ष यूके को सालाना आधार पर भी पीछे छोड़ने की संभावना है।

आख़िर भारत इतना आगे कैसे निकल गया?

कुछ मामलों को छोड़े दे तो भारत की जनसंख्या उसके लिए किसी वरदान से कम नही है। ज़्यादा बड़ी जनसंख्या मतलब ज़्यादा बड़ा बाज़ार और जितना बड़ा बाज़ार, उतना मुनाफ़ा कमाने का मौक़ा, यही कारण है कि अपने आप को तुर्रम खान समझने वाले देश भी भारत से पंगा लेने से पहले सौ बार सोचते हैं। एक बड़ा बाज़ार एवं विकास की अधिक सम्भावनाएं होने के कारण वैश्विक कंपनियां भारत आती हैं, वे उत्पादन करती हैं जिससे भारत की अर्थव्यस्था का विकास होता है। ऊपर से सरकार द्वारा बिज़नेस फ़्रेंडली नीतियों के निर्माण से न सिर्फ़ बाहरी कंपनियों को भारत में फायदा हो रहा है अपितु कई स्टार्टअप्स भी यूनिकॉर्न की श्रेणी में पहुंच चुके हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा और दशा प्रदान कर रहे हैं।

इसके साथ-साथ भारत के अंदर अब कौशल विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है जिससे कम्पनियों को स्किल्ड लेबर भी मिल जा रहे हैं। इन सब के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी पैसा खर्च किया जा है जिससे नवाचार बाढ़ रहा है, जो समग्र रूप से पूरे अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर रहा है। इसके साथ ही विकासशील देश होने के नाते भारत में संभावनाओं का असीम भंडार है, विकास सम्बन्धी नए-नए आयाम हैं, MSME जैसे सेक्टर जो भारत में रोज़गार का एक प्रमुख श्रोत है भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ बने हुए हैं।

आख़िर ब्रिटेन कैसे रह गया पीछे?

विकास का एक मॉडल होता है जिसके अंतर्गत विकास की सबसे अधिक सम्भावनाएं कम विकसित देशों में होती है, उसके बाद विकासशील देशों में और तत्पश्चात विकसित में। विकास करने के क्रम में विकसित देशों के पास विकासशील देशों के जितने अवसर नही होते हैं अपितु उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उस विकास की सततता को बनाए रखने की होती है। यूके एक विकसित देश है, वहां विकास की सम्भावनाएं अधिक नही हैं। ब्रेक्जिट के बाद से सम्भावनाओं में और कमी आयी है जिसके कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पटरी पर से उतर गयी है। इसके अलावा ब्रिटेन न ही भारत जितना बड़ा बाज़ार है और न ही उसके पास भारत जितना युवा श्रम शक्ति। जिसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था के विकास की गति मंद पड़ गई है और रही सही कसर लंदन में सरकार की अस्थिरता ने पूरी कर दी है। आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा इसीलिए कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है, एक समय अंग्रेजों के संदर्भ में कहा जाता था कि ब्रितानिया सरकार के राज्य में सूरज कभी अस्त नही होता लेकिन आज उनके खुद के देश की अर्थव्यस्था भी उनके उपनिवेश रहे भारत के हाथों मात खा गई।

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रुपये के साथ-साथ देश का फॉरेक्स रिजर्व भी हो रहा मजबूत, लगातार चौथे हफ्ते बढ़ा

News18 हिंदी लोगो

News18 हिंदी 6 दिन पहले News18 Hindi

© News18 हिंदी द्वारा प्रदत्त "रुपये के साथ-साथ देश का फॉरेक्स रिजर्व भी हो रहा मजबूत, लगातार चौथे हफ्ते बढ़ा"

नई दिल्ली. आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा देश का विदेशी मुद्रा भंडार दो दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह के दौरान 11.02 अरब डॉलर बढ़कर 561.162 अरब डॉलर पर पहुंच गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार चौथे सप्ताह तेजी आई है. पिछले सप्ताह देश का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. वहीं, 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह में देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार 14.72 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी.

गौरतलब है कि अक्टूबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था. वैश्विक घटनाक्रमों के बीच केंद्रीय बैंक द्वारा रुपये के एक्सचेंज रेट में तेज गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग करने की वजह से इसमें गिरावट आई थी. बता दें कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया शुक्रवार को 10 पैसे मजबूत होकर 82.28 के स्तर पर बंद हुआ. कारोबार के दौरान ये 82.08 तक पहुंच गया था. यह शुक्रवार को इसका उच्चतम स्तर था.

अन्य रिजर्व भी बढ़े

केंद्रीय बैंक ने कहा कि कुल मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाली फॉरेन करेंसी एसेट्स (एफसीए) दो दिसंबर को समाप्त सप्ताह में 9.694 अरब डॉलर बढ़कर 496.984 अरब डॉलर हो गईं. एफसीए में यूरो, पौंड और येन जैसी गैर- अमेरिकी मुद्राओं में आई गिरावट व बढ़त के प्रभावों को भी शामिल किया जाता है. इसके अलावा स्वर्ण भंडार का मूल्य समीक्षाधीन सप्ताह में 1.086 अरब डॉलर बढ़कर 41.025 अरब डॉलर हो गया.

यहां आई गिरावट

आंकड़ों के अनुसार, स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर) 16.4 करोड़ डॉलर घटकर 18.04 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा देश का मुद्रा भंडार भी 7.5 करोड़ डॉलर घटकर 5.108 अरब डॉलर रह गया.

पाकिस्तान के फॉरेक्स रिजर्व में बड़ी गिरावट

पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक (एसबीपी) का विदेशी मुद्रा भंडार दो दिसंबर को समाप्त सप्ताह में 78.4 करोड़ डॉलर घटकर चार साल के निचले स्तर 6.72 अरब डॉलर पर आ गया. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों से यह जानकारी मिली है. इससे पहले 18 जनवरी, 2019 को केंद्रीय बैंक के पास मुद्रा भंडार 6.64 अरब डॉलर था. आंकड़ों के अनुसार, वाणिज्यिक बैंकों के पास कुल विदेशी मुद्रा भंडार 5.86 अरब डॉलर रहा. इसको लेकर देश में कुल विदेशी मुद्रा भंडार 12.58 अरब डॉलर है.

भारत की आजादी के वक्‍त एक डॉलर की कीमत थी चार रुपये, आज करीब 80, पढ़ें 75 वर्ष में कैसे हुआ बदलाव

जुलाई 2022 में भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के निचले स्तर पर फिसल गया क्योंकि आपूर्ति प्रभावित होने के चलते कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अमेरिकी डॉलर की मांग को बढ़ावा दिया।

भारत की आजादी के वक्‍त एक डॉलर की कीमत थी चार रुपये, आज करीब 80, पढ़ें 75 वर्ष में कैसे हुआ बदलाव

रुपये ने डॉलर तोड़ा अपना पिछला रिकॉर्ड कर 79.99 के निचले स्तर पर पहुंच गया है।

Rupee’s Journey Since India’s Independence: भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष (75th Independence Day) का जश्न मना रहा है और आने वाले वर्षों के दौरान आर्थिक विकास को ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने देख रहा है। अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को किनारे रखते हुए आइए देखते हैं कि भारतीय रुपया का 1947 के बाद से अब तक का सफर कैसा रहा है।

किसी देश की मुद्रा उसके आर्थिक विकास का आकलन करने का एक मुख्य घटक होती है। बीते 75 सालों में हमारे देश ने अपार प्रगति की है और लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। लेकिन, देश की मुद्रा रुपये में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। रुपये के अवमूल्यन का नतीजा यह है कि आज रुपया लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।

पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए: भारत को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपए हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपए की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए हुई थी।

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1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद 1962 और 1965 के युद्ध के बाद देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपए की कीमत 6.36 रुपए प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार फिर से रुपए की कीमत को कम करने का फैसला किया, जिसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपए हो गई।

RBI ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया: 1991 में एक बार फिर भारत में गंभीर आर्थिक संकट आया। जिसके बाद देश अपने आयातों का भुगतान करने और अपने विदेशी ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं था। इस संकट को टालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया और उसकी कीमत 9 प्रतिशत और 11 प्रतिशत घटाई। अवमूल्यन के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य लगभग 26 था।

रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने जानकारी दी कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) पर 3।74 प्रतिशत की दर से गिर रहा है। 2000 से 2007 के बीच, रुपया एक हद तक स्थिर हो गया जिसके कारण देश में पर्याप्त विदेशी निवेश आया। हालांकि, बाद में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इसमें गिरावट आई।

फॉरेन रिज़र्व का रुपए पर असर: 2009 के बाद से रुपए का मूल्यह्रास शुरू हुआ, जिसके बाद वह 46.5 से अब 79.5 पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की सबसे बड़ी वजह फॉरेन रिज़र्व में गिरावट होती है। अगर फॉरेन रिज़र्व कम होगा तो रुपया कमज़ोर होगा और अगर ये ज्यादा होगा तो रुपया मज़बूत होगा।

हाल की घटनाओं को देखें तो जहां सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। वहीं, 24 जून 2022 आते-आते ये कम होकर 593.32 बिलियन डॉलर पर आ गया है। जिसके पीछे की सबसे अहम वजह महंगाई और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों को बताया जा रहा है। यही वजह है कि रुपए की वैल्यू गिरती जा रही है।

अमेरिका, ब्रिटेन के प्रतिबंध और धमकी के बावजूद क्यों नहीं झुक रहे हैं पुतिन, जानें क्या है कूटनीति और पावर गेम

प्रशांत श्रीवास्तव

Russia-Ukraine Crisis: रूस की स्थिति 2014 जैसी नहीं है। वह कहीं ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूत है। साथ ही उसने पिछले 20 साल में पश्चिमी देशों की तुलना में चीन और दुनिया के दूसरे देशों से अपना कारोबार बढ़ाया है।

Russia Ukraine Crisis

  • क्रीमिया पर कब्जे के बाद रूस पर लगे प्रतिबंध से जीडीपी में 2.5 फीसदी की गिरावट आई थी और वहां पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया था।
  • 2022 में रूस के पास 630 अरब डॉलर का गोल्ड और विदेशी मुद्रा भंडार है।
  • रूस किसी भी हालत में यूक्रेन को नाटो का सदस्य नहीं बनने देना चाहता है। उसे लगता है कि ऐसा होने से पावर गेम बिगड़ जाएगा।

नई दिल्ली: रूस द्वारा यूक्रेन (Ukraine) के विद्रोहियों के कब्जे वाले लुहांस्क और डोनेस्टक प्रांत को स्वतंत्र देश की मान्यता देना और फिर उसकी संसद द्वारा पुतिन को देश के बाहर सैन्य आक्रमण की अनुमति देने से साफ है कि राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन एक तय एजेंडे पर काम कर रहे हैं। और उन पर पश्चिमी देशों खास कर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों के आर्थिक प्रतिबंधों और चेतावनियों का कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि दुनिया की 11 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था क्या आर्थिक प्रतिबंधों से लड़ने के लिए तैयार है। साथ ही ऐसी क्या कूटनीति है जिसके जरिए पुतिन कदम पीछे खीचने के कोई संकेत नहीं दे रहे हैं।

अब आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा तक क्या लगे प्रतिबंध

हांस्क और डोनेस्टक प्रांत को स्वतंत्र देश की मान्यता देने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिए हैं। इसके तहत अमेरिका ने रूस सॉवरेन डेट पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ रूस के प्रतिष्ठित परिवारों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही हैं। जिसमें रूस के राष्ट्रपित व्लादिमिर पुतिन का भी नाम शामिल हो सकता है। इसके अलावा ब्रिटेन ने रूस के 5 प्रमुख बैंकों और रूस के तीन रईसों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी तरह जर्मनी ने रूस से जर्मनी तक गैस सप्लाई के लिए बना नॉर्ड-2 पाइपलाइन प्रोजेक्ट को रोक दिया है।

इसके अलावा कनाडा के पीएम जस्टिन टूडो ने मंगलवार को रूस पर पहले राउंड की पाबंदियों का ऐलान किया। रूस ने यूक्रेन के जिन प्रांतों को स्वतंत्र घोषित किया है, उनसे कोई भी आर्थिक समझौते नहीं होंगे। इसके अलावा रूसी बॉन्ड की खरीद पर भी रोक लगाई जाएगी। यही नहीं उन रूसी सांसदों पर भी पाबंदियां लगाई जाएंगी, जिन्होंने डोनेत्सक और लुहान्सक को स्वतंत्र राज्य घोषित करने के प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया है।

रूस प्रतिबंधों के लिए कहीं ज्यादा तैयार

असल में यह कोई पहली बार नहीं है जब रूस पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा रहे हैं। इसके पहले साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उस पर कब्जा किया था तो अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे। उस वक्त इन प्रतिबंधों की वजह से रूस की जीडीपी में 2.5 फीसदी की गिरावट आई थी और वहां पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। लेकिन सीएनन की रिपोर्ट के अनुसार रूस 2014 की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत है। और अगर सख्त प्रतिबंध लगे तो जीडीपी में एक फीसदी की गिरावट आएगी और अगर SWIFT (200 देश फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन के लिए करते हैं स्विफ्ट का इस्तेमाल) तो 5 फीसदी तक जीडीपी में गिरावट आ सकती है।

पिछले 20 साल में रूस के कारोबार को देखा जाय तो उसके निर्यात और आयात में अमेरिका और यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार रूस ने 2020 में रूस ने 300 अरब डॉलर से ज्यादा का निर्यात किया था और 200 अरब डॉलर से ज्यादा आयात किया है। और इसमें अमेरिका, यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी घटी है और चीन और दूसरे देशों की हिस्सेदारी बढ़ी है। इसी तरह 2014 की तुलना में रूस का गोल्ड और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है। 2014 में रूस के पास करीब 500 अरब डॉलर का रिजर्व था। जबकि फरवरी के आंकड़ों के अनुसार रूस के पास 630 अरब डॉलर का रिजर्व है।

रूस को किस बात का है डर

रूस को इस बात का डर है कि अगर यूक्रेन नाटो का हिस्सा बन गया तो वह उसकी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इसके अलावा रूस के रूस के रक्षा मंत्री शोइगु ने दावा किया है कि यूक्रेन परमाणु हथियार हासिल कर सकता है। साथ राष्ट्रपति पुतिन ने यह भी दावा है कि यूक्रेन क्रीमिया को वापस हासिल करना चाहता है। ऐसे आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा में पुतिन का कहना है इन समीकरणों से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी और यूक्रेन , उत्तर कोरिया से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। उनका कहना है कि वह यूक्रेन को किसी भी स्थिति में परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे। इन परिस्थितियों में रूस किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं है। और इस लड़ाई में चीन भी इन डायरेक्ट रूप से रूस के साथ खड़ा हुआ नजर आता है। जो कि रूस के लिए न केवल बड़ा बाजार है बल्कि कूटनीतिक रूप से मजबूत कड़ी है।

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