BFSI Summit: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण चाहते बैंकर
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकरों ने ऋण वृद्धि की गति में भरोसा जताते हुए कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय ने विस्तार करने का एक आधार दिया है। उनका कहना था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण बिना किसी जल्दबाजी के निवेशकों के व्यापक आधार के लिए सरकार की हिस्सेदारी का विनिवेश करके किया जा सकता है।
इस वक्त कर्ज की बढ़ती मांग को देखते हुए चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि निवेश से जुड़े जोखिम की गारंटी के मानक और जोखिम प्रबंधन की स्थिति काफी बेहतर है। इन बैंकों ने पिछले प्रकरण से सबक भी सीखे हैं। सरकारी बैंक मुश्किल दौर का सामना करते रहे हैं। महामारी के दो सालों के कम आधार की तुलना में कर्ज की मांग में वृद्धि (सालाना 17.5 फीसदी की वृद्धि) देखी जा रही है। महामारी के दौर में ऋण पोर्टफोलियो का विस्तार एकल अंकों में हुआ।
सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण विषय पर हुई परिचर्चा के दौरान बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी संजीव चड्ढा ने कहा कि 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य के मुताबिक हमारी बैंकिंग संरचना का तंत्र थोड़ा अलग होना चाहिए और सरकार को निजीकरण पर जोर देना चाहिए। उनके मुताबिक दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के जरिये यह प्रक्रिया शुरू करना सही कदम होगा।
नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट के प्रबंध निदेशक राजकिरण राय जी का कहना है कि निजीकरण की अवधारणा दो बिंदुओं के चलते आई कि सरकारी बैंकों को पूंजी की जरूरत है और बैंकों की क्षमता पर चर्चा की जाती है। फिलहाल इनका प्रदर्शन वृद्धि, क्षमता और मुनाफे के मोर्चे अच्छा है। इसकी दो वजह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय और कोविड महामारी है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का आधार मजबूत बना हुआ है और ये बैंक सभी समस्याओं से उबरे हैं। इन बैंकों ने तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया को अच्छी तरह भुनाया है। मई 2022 तक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक और सीईओ रहे राय ने कहा कि इस वक्त निजीकरण का दबाव कम है। वह वर्ष 2020 में यूनियन बैंक में आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक के विलय में शामिल थे।
उनका कहना है कि सरकार एक या दो बैंकों की निजीकरण प्रक्रिया को बढ़ाकर यह समझने की कोशिश कर सकती है कि यह कैसे काम करता है। राय ने कहा कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमता की स्थिति को देखते हुए बैंकों के पूर्ण निजीकरण की प्रक्रिया में 10-15 साल भी लग सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश खारा का कहना है कि संस्था का सक्षम होना जरूरी है और देश के बैंकिंग क्षेत्र में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जब निजी बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने राहत पैकेज दिया है।
वहीं यूको बैंक के एमडी और सीईओ सोम शंकर प्रसाद ने कहा, ‘निजीकरण पर जोर देने की शुरुआत इस विचार के साथ हुई है कि निजी क्षेत्र सक्षम और बेहतर है और सार्वजनिक संस्था सक्षम नहीं है जबिक यह सच नहीं है। अगर आप किसी के लिए सक्षम तरीके से काम करने के लिए बेहतर माहौल तैयार करते हैं तब चीजें बेहतर दिशा की ओर शेयर मार्केट का चार्ट कैसे देखते है बढ़ेंगी चाहे वह सार्वजनिक या निजी उद्यम क्यों न हो।’ प्रसाद ने कहा कि निजीकरण का फैसला सरकार को करना है और इस पर अमल विनिवेश की प्रक्रिया, संसाधनों को बढ़ाने और बैंकिंग क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कम करके किया जा सकता है।
एसबीआई के चेयरमैन खारा ने कहा कि वर्ष 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के विलय और 2017 में पांच सहयोगी बैंकों के विलय के साथ एसबीआई समूह को मजबूत बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई, जिससे मदद मिली। उन्होंने कहा, ‘ये सभी छोटी इकाईं थीं और मूल बैंक के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ भी प्रतिस्पर्द्धा कर रही थीं। इस तरह इन बैंकों को शुद्ध ब्याज मार्जिन में भी नुकसान हो रहा था।’
5paisa से समझें इंडेक्स कैसे कराएंगे शेयर बाजार में कमाई, समझ जाएंगे कहां जा रहा स्टॉक मार्केट
बाजार में कई इंडेक्स मौजूद हैं जो निवेशकों को निवेश के बेहतर फैसले लेने में मदद करते हैं। 5paisa शेयर बाजार के सभी सेक्टर और इंडेक्स से जुड़ी जानकारियां देने के अलावा बेहद आसान तरीके से इंडेक्स की चाल को समझने में मदद करता है।
नई दिल्ली, ब्रांड डेस्क। अगर आप शेयर बाजार में निवेश करते हैं या फिर करना चाहते हैं तो आपको एक बात हर हाल में पता होगी कि शेयर बाजार का गिरना या उसका चढ़ना ही तय करता है कि आपको बाजार में कमाई होगी या नुकसान होगा। अब सवाल उठता है कि किसी निवेशक या आम आदमी को कैसे पता चलता है कि किसी दिन शेयर बाजार गिरा है या चढ़ा है। इसी सवाल का आसान जवाब देने के लिए शेयर बाजार ने सेंसेक्स और निफ्टी की शुरुआत हुई थी जो कि अब भारतीय शेयर बाजार का चेहरा बन गए हैं। बाजार पर हल्की नजर रखने वाले भी जानते हैं कि जब सेंसेक्स और निफ्टी गिरते हैं तो माना जाता है कि भारत का शेयर बाजार गिरा है, वहीं ये इंडेक्स अगर बढ़ते हैं तो माना जाता है कि घरेलू बाजार बढ़ रहा है। हालांकि इंडेक्स की दुनिया इतनी आसान और छोटी नहीं है। सेंसेक्स और निफ्टी के अलावा बाजार में कई इंडेक्स मौजूद हैं जो न केवल बाजार के कई अलग अलग हिस्सों के प्रदर्शन की जानकारी देते हैं। साथ ही निवेशकों को निवेश के बेहतर फैसले लेने में मदद भी करते हैं। ऐसे में अगर आप भी चाहते हैं कि बाजार से आप ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकें तो आपके लिए ये जानना जरूरी होगा आखिर ये इंडेक्स होते क्या हैं।
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क्या होते हैं इंडेक्स
शेयर बाजार अपने तेजी से लिए जाने वाले फैसलों के लिए जाना जाता है। हालांकि फैसले लेने के लिए आपको पता होना चाहिए कि शेयर बाजार की दिशा क्या है। सभी जानते हैं कि किसी की भी दिशा जानने के लिए भले ही वो शेयर बाजार क्यों न हो आपके पास कम से कम दो रिफ्रेंस प्वाइंट होने जरूरी हैं। शेयर मार्केट का चार्ट कैसे देखते है क्योंकि इसी से आप दोनों प्वाइंट की तुलना कर कोई निष्कर्ष निकाल सकते हैं। इसी नियम को देखते हुए शेयर बाजार में इंडेक्स की शुरुआत की गई है। ये इंडेक्स इस आधार पर डिजाइन किये गए हैं कि वो शेयर बाजार के अधिकांश हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हों और कई स्टॉक के प्रदर्शन के असर को किसी खास वक्त के लिए एक रिफ्रेंस प्वाइंट के रूप में दर्शा सकते हों। इसका फायदा ये है कि सूचकांक के पिछले रिफ्रेंस प्वाइंट्स की आपस में तुलना कर बाजार में निवेशक जान सकते हैं कि इस इंडेक्स में शामिल कंपनियों का कुल प्रदर्शन पहले से बेहतर हुआ या नीचे गिरा है। निवेशक ऐसे ही कई प्वाइंट की मदद से बाजार की चाल का अंदाजा भी लगाते हैं। यानि इंडेक्स बाजार में किसी एक खासियत के आधार पर चुनी गई कंपनियों का समूह होता है जिसका किसी खास वक्त पर मूल्य उन कंपनियों के उसी वक्त पर स्टॉक के प्रदर्शन के आधार पर तय होता है।
कितनी तरह के होते हैं इंडेक्स
शेयर बाजार में हजारों कंपनियां लिस्टेड हैं, ये कंपनियां बाजार मूल्य के हिसाब से अलग अलग साइज और सेक्टर से आती है। शेयर बाजार के हर हिस्से की सही तस्वीर पाने के लिए अलग अलग साइज और सेक्टर के हिसाब से इंडेक्स बनाए गए हैं। आम तौर पर तीन तरह दो तरह के इंडेक्स होते हैं। पहला इंडेक्स कंपनियों के बाजार मूल्य के हिसाब से बनाया जाता है। इसमें सभी सेक्टर की कंपनियों को शामिल किया जाता है। इसमें सेंसेक्स निफ्टी, निफ्टी नेकस्ट 50, लार्ज कैप, स्मॉल कैप और मिड कैप इंडेक्स आते हैं। वहीं दूसरे इंडेक्स सेक्टर पर आधारित होते हैं। जैसे बैंकिंग सेक्टर इंडेक्स, आईटी सेक्टर इंडेक्स, फार्मा सेक्टर इंडेक्स, रियल्टी सेक्टर इंडेक्स आदि।
क्या होते हैं सेंसेक्स और निफ्टी
Sensex और Nifty शेयर बाजार के मुख्य इंडेक्स हैं। दरअसल भारत के बाजार की चाल इन दो Index से पता चलती है। सेंसेक्स में देश की सबसे बड़ी 30 कंपनियों और निफ्टी में 50 कंपनियों को शामिल किया गया है। ये कंपनियां लगभग सभी प्रमुख sector का प्रतिनिधित्व करती हैं और घरेलू बाजार में कुल कारोबार का अधिकांश हिस्सा इन कंपनियों में होता है। यानि इन कंपनियों का प्रदर्शन तय करता है कि किसी खास दिन पूरे बाजार की चाल क्या होगी।
क्यों जरूरी है इंडेक्स को समझना
Index को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे किसी खास समय पूरे बाजार या किसी खास सेक्टर की दिशा का पता चलता है। वहीं दूसरी तरफ म्युचुअल फंड मैनेजर इन इंडेक्स को बेंचमार्क रखकर रणनीति बनाते हैं। जैसे आईटी सेक्टर पर आधारित म्युचुअल फंड स्कीम आईटी सेक्टर के रिटर्न से ज्यादा रिटर्न पाने की कोशिश करती है। इंडेक्स और स्कीम के प्रदर्शन की शेयर मार्केट का चार्ट कैसे देखते है तुलना से निवेशक पता कर सकते हैं कि किस स्कीम में निवेशकों को रिटर्न बाजार के रिटर्न से भी ज्यादा मिला है। 5paisa आपको शेयर बाजार के सभी सेक्टर और इंडेक्स से जुड़ी ताजा जानकारियां देता है और बेहद आसान तरीके से इंडेक्स की चाल को समझने में मदद करता है। जिससे आप बाजार में निवेश को लेकर बेहतर फैसला ले सकते हैं।
Income Tax on Share Market Earning: जानिए शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे लगता है इनकम टैक्स, समझ लेंगे तो होगा फायदा ही फायदा!
Income Tax on Share Market Earning: शेयर बाजार से हुई कमाई (Share Market Earning) के साथ-साथ उस पर लगने वाले इनकम टैक्स (Income Tax) की जानकारी होना भी जरूरी है। अलग-अलग तरह की कमाई पर अलग-अलग दर से टैक्स (Taxation on Share Market Earning) लगता है। अगर आप शेयर बाजार से हुई कमाई पर इनकम टैक्स का सही कैल्कुलेशन (Income Tax Calculation on Share Market Earning) नहीं कर पाएंगे, तो आपको नुकसान हो सकता है। आइए जानते हैं शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे और कितना लगता है टैक्स।
Income Tax on Share Market Earning: जानिए शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे लगता है इनकम टैक्स, समझ लेंगे तो होगा फायदा ही फायदा!
इंट्रा-डे और फ्यूचर-ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई पर टैक्स
शेयर बाजार में अगर आप एक ही दिन में शेयर खरीद कर उसी दिन शाम तक बेच देते हैं तो इसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहा जाता है। इस तरह से हुई कमाई को स्पेक्युलेटिव बिजनस इनकम कहा जाता है। वहीं फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई को नॉन-स्पेक्युलेटिव बिजनस इनकम कहा जाता है। इंट्रा-डे और फ्यूचर-ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है। यानी 2.5 लाख रुपये तक की कुल कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, उसके ऊपर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा।
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स
अगर आप शेयर बाजार में 1 साल से कम और 1 दिन से अधिक के लिए शेयर खरीदते हैं तो इससे हुए कमाई शॉर्ट टर्म कैपिल गेन कहलाती है। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर आपको फ्लैट 15 फीसदी टैक्स देना होता है। हालांकि, अगर आपकी कुल कमाई 2.5 लाख रुपये तक ही है, तो आपको कोई टैक्स नहीं चुकाना होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप कौन से टैक्स स्लैब में आते हैं।
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स
अगर शेयर बाजार में आप 1 साल से अधिक की अवधि के लिए शेयर खरीदते हैं तो 1 साल बाद उसे बेचने से हुई कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहलाती है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 1 लाख रुपये तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है, जबकि उससे अधिक की कमाई पर फ्लैट 10 फीसदी का टैक्स लगता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस टैक्स स्लैब में आते हैं। हालांकि, अगर आपकी कुल कमाई 2.5 लाख रुपये तक ही है, तो आपको कोई टैक्स नहीं चुकाना होता है।
MS Excel Stock Chart in Hindi – Types Of Excel Charts in Hindi
MS Excel Stock Chart in Hindi: – इस पोस्ट मे हम “Stock Chart” के बारे मे देखेंगे और सीखेंगे की कैसे Stock Chart बनाते है, इस पोस्ट के पहले मैंने एक और पोस्ट लिखी है, जिसमे मैंने चार्ट्स के प्रकार और Area चार्ट के बारे मैं काफी अच्छे से बताया है।
पिछले पोस्ट को देखने ने लिया यहाँ क्लिक करे ।
Stock Chart: – हर किसी चार्ट का अपना महत्व होता है जैसे की “Stock Chart”, इस चार्ट का उपयोग तब किया जाता है जब आप के पास Stock से रिलेटेड डाटा होता है, जैसा की आप सब ने शेयर मार्केट के बार मे तो सुना ही होगा, और आप ये जानते होंगे की शेयर की वैल्यू बढ़ती और घटती है तथा सभी शेयर का वॉल्यूम (VOLUME) होता, तो अगर आप के पास ये सभी डाटा रिकॉर्ड के रूप मे हैं तो आप “Stock Chart” बना सकते है।
जैसा की आप नीचे दिए हुवे इमेज मे देख सकते है।
ऊपर दिए हुए शेयर मार्केट का चार्ट कैसे देखते है इमेज मे आप देख सकते है की “SYMBOL” “VOLUME” “OPEN” “HIGH” “LOW” “CLOSE” कॉलम दिख रहे है , याद रहे की बिना इन कॉलम के आप स्टॉक चार्ट (“Stock Chart”) नहीं बना सकते है, क्योकि ये चार्ट सिर्फ और सिर्फ स्टॉक्स के उतार चढ़ाव को दिखाने के लिए है और अगर ये कॉलम आप के पास ना होंगे तो आप “Stock Chart” नहीं बना सकते है।
Stock Chart मूलतः छः (6 ) तरीके के होते है, इन सभी तरीको मे चार्ट के दिखने के तरीके मे बदलाव आ जाता है।
1- High-Low-Close :-
इस चार्ट को बनाने के लिए “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) आप के स्प्रेडशीट के कॉलम मे रहनी चाहिए और चार्ट को सेलेक्ट करने के पहले ये तीन कॉलम सिलेक्ट होने चाहिए, अन्यथा आप इस चार्ट को नहीं बना सकते।
2- Open-High-Low-Close :-
इस चार्ट को बनाने के लिए “OPEN” “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) आप के स्प्रेडशीट के कॉलम मे रहनी चाहिए और चार्ट को सेलेक्ट करने के पहले ये चार कॉलम सिलेक्ट होने चाहिए, अन्यथा आप इस चार्ट को नहीं बना सकते।
3- Volume-High-Low-Close :-
इस चार्ट को बनाने के लिए “VOLUME” “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) आप के स्प्रेडशीट के कॉलम मे रहनी चाहिए और चार्ट को सेलेक्ट करने के पहले ये चार कॉलम सिलेक्ट होने चाहिए, अन्यथा आप इस चार्ट को नहीं बना सकते।
4- Volume-Open-High-Low_Close :-
इस चार्ट को बनाने के लिए “VOLUME” “OPEN” “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) आप के स्प्रेडशीट के कॉलम मे रहनी चाहिए और चार्ट को सेलेक्ट करने के पहले ये पांच कॉलम सिलेक्ट होने चाहिए, अन्यथा आप इस चार्ट को नहीं बना सकते।
ये दिए गए सभी चार्ट्स को बनाने का तरीका एक ही होता है बस आप को कुछ ऑप्शन अलग सेलेक्ट करने पड़ते है।
हम चौथे नंबर का चार्ट बनाएंगे जो की “Volume-Open-High-Low_Close ” है, याद रहे जैसा की मैंने ऊपर कहा है की इस चार्ट को बनाने के लिए “VOLUME” “OPEN” “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) कॉलम आपके स्प्रेडशीट मे रहना चाहिए।
तो चलिए देखते है की “Stock Chart” को बनाने किए लिए कौन से स्टेप्स को फॉलो करना पड़ता है।
1 – सबसे पहले तो आपके spreadsheet मे डाटा होना चाहिए, जैसे की मेरे spreadsheet मे नीचे दिए गए रिकॉर्ड है।
2 – अब ऊपर दिए गए डाटा (या आपके पास जो भी डाटा हो) को सेलेक्ट करे, याद रहे की हम चौथे नंबर का चार्ट बना रहे है ।
और इसके लिए “VOLUME” “OPEN” “HIGH” “LOW” “CLOSE” प्राइस (Price ) को सेलेक्ट करते हुए नीचे दिए हुए स्टेप्स को करे।
ऊपर दिए हुए इमेज के स्टेप्स के आधार पर, आप का चार्ट बन कर तैयार हो जाएगा।
3 – अब इस चार्ट की कलर फोर्मेटिंग करेंगे, मतलब की इसे दिखने मे थोड़ा अच्छा बनाएंगे,और चार्ट का टाइटल नाम भी बदलेंगे (अपने आप “Chart Title ” करके नाम आएगा पर जब आप इस पर डबल क्लिक करेंगे, तब आप इसका नाम बदल सकेंगे जैसे की मैंने नीचे दिए हुए चार्ट का नाम “Stock Chart” कर दिया है।
इसके लिए नीचे दिए हुए स्टेप्स को फॉलो करे।
और इस तरीके से आप का “Stock Chart” बन कर तैयार हो जाता है।
तो आज के पोस्ट से हमने MS Excel Stock Chart का उपयोग और उसे कैसे बनाये ये सीखा अब नेक्स्ट पोस्ट मे हम MS Excel Surface Chart के बारे मे देखेंगे।
वर्ष 2023 के लिए पांच अहम सवाल
हममें से कई लोगों की यह प्रवृत्ति होती है कि हम पुराने तरीके से सोचते हैं और भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखते हैं जिसके लिए आर्थिक स्वाधीनता एक राष्ट्रीय नीति हो। हालांकि दुनिया के साथ रिश्ता हमारे लिए भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। महामारी की अवधि में जैसा हमने देखा, विश्व अर्थव्यवस्था की घटनाएं भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल सकती हैं। इस आलेख में हम पांच उन सवालों पर नजर डालेंगे जो 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देंगे और भारत पर भी प्रभाव डालेंगे। भारत में वैश्वीकरण की राह में कई बाधाएं हैं। 2014-15 से लेकर 2021-22 तक चालू खाते में आवक सालाना औसतन 5.3 फीसदी बढ़ी। नॉमिनल अमेरिकी डॉलर में यह वृद्धि काफी धीमी है।
इसके बावजूद बाहरी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है। सबसे पहले आकार पर नजर डालते हैं। 2021-22 में 0.84 लाख करोड़ डॉलर की राशि बाहर गई और 0.8 लाख करोड़ रुपये की राशि चालू खाते में आई। यह राशि बहुत अधिक है। दूसरा, निर्यात में वृद्धि भी महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को संभालने की दृष्टि से अहम थी। महामारी के पहले मासिक गैर तेल, गैर स्वर्ण निर्यात 40 अरब डॉलर का था। विकसित बाजारों की वृहद नीति के चलते इनमें इजाफा हुआ और 2021 के आखिर तक यह प्रति माह 55 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह ऐसे समय में अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए एक अहम जरिया था जब घरेलू खपत और निवेश में कमजोरी थी। इस व्यापक बढ़ोतरी के आधार पर समझा जा सकता है कि इस समय बाहरी क्षेत्र की महत्ता कितनी अधिक है।
उसके पश्चात 2022 में हमें इस बात का एक और उदाहरण मिला कि वैश्विक घटनाएं भारतीय निर्यात वृद्धि को किस प्रकार आकार देती हैं? फरवरी में दो बाहरी घटनाएं हुईं: रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया। साथ ही यह वह समय था जब निर्यात में तेजी का दौर समाप्त हो रहा था, गैर तेल, गैर स्वर्ण निर्यात फरवरी से सितंबर 2022 के बीच करीब 55 अरब डॉलर प्रति माह पर ठहरा हुआ था। इससे वैश्विक घटनाओं और भारतीय निर्यात के बीच रिश्तों पर जोर पड़ा। ऐसे में अब जबकि वर्ष का अंत करीब है तो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर एक नजर डालना दिलचस्प होगा ताकि उन पांच मुद्दों पर नजर डाली जा सके जो 2023 में मायने रखेंगे।
कई लोग सोचते हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्ती काफी हद तक पूरी हो चुकी है। अमेरिका में निरंतर मुद्रास्फीति और आर्थिक मजबूती को देखते हुए यह संभव है कि दरों में इजाफा जारी रहेगा और वह 5 फीसदी से ऊपर की सहमति पर रुकेगा। यह जिस हद तक होगा हमें उसी हिसाब से वैश्विक वित्तीय तनाव का केंद्रीकरण देखने को मिलेगा जो विकसित बाजारों में दरों में इजाफे के साथ होगा जबकि उभरते बाजारों में प्रतिफल की वांछित दर बढ़ेगी। भारत की बात करें तो अगर रिजर्व बैंक अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये में आ रही गिरावट को रोकना चाहता है तो हमें दरों में इजाफा देखने को मिल सकता है।
अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति के लिए दो फीसदी से अधिक का स्तर स्वीकार कर ले और इजाफा करना बंद कर दे तो? इससे भारत में फाइनैंसिंग आसान होगी। लेकिन तब परिदृश्य मध्यम अवधि में अमेरिका के कमतर आर्थिक प्रदर्शन का भी होगा। चीन कोविड शून्य नीति और शेष विश्व के साथ शत्रुता में उलझा हुआ है। चीन विश्व अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है और वहां हालात का सामान्य होना दुनिया के लिए मददगार होगा।
परंतु हम कोविड प्रतिबंधों के कम होने की संभावना पर नजर बनाए हुए हैं जबकि विदेशी टीकों की कवरेज कमजोर है। यह भारत की दूसरी लहर साबित हो सकता है। महामारी के दौरान दुनिया भर में सरकार, संस्था और व्यक्तिगत स्तर पर कर्ज का स्तर बढ़ा। मौजूदा ब्याज दर और 2023 में ऊंची ब्याज दर का संभावित परिदृश्य इनमें से कई दिक्कतों की वजह बना रहेगा। कमजोर वृद्धि और बढ़ती ब्याज दर के परिदृश्य में 2023 में कई संस्थाओं को ऋण संकट का सामना करना होगा। यूक्रेन युद्ध यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहा है। रूस यूरोप की ऊर्जा आपूर्ति रोककर उसे यूक्रेन का समर्थन करने से रोकना चाहता है और यूरोप इससे परेशान है।
यूरोप में ऊर्जा कीमतें बढ़ते ही नवीकरणीय ऊर्जा के लिए जमकर निवेश शुरू हुआ। संभव है कि 2023 में हालात बेहतर हों। दिसंबर, जनवरी और फरवरी में जाड़ों का तापमान मायने रखता है। 2023 के आखिर तक यूरोप में गैस इन्वेंटरी को लेकर चिंता उत्पन्न होगी और यूरोप पूरे 2023 के दौरान तरल प्राकृतिक गैस की निरंतर खरीद करेगा। प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है जिससे युद्ध का अंत होने की संभावना बढ़ गई है। परंतु रूस का आक्रमण समाप्त होने के बाद भी लगता नहीं है कि वह रूस की मौजूदा सरकार पर ऊर्जा की निर्भरता स्वीकार करेगा। यानी यूरोप की ऊर्जा संबंधी कठिनाइयां धीरे-धीरे जाएंगी।
अमेरिकी ब्याज दरों, चीन की अर्थव्यवस्था, कर्ज की निरंतरता और यूक्रेन युद्ध के बीच एक संभावना यह भी है कि विश्व अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा और भारत भी मुश्किल में पड़ जाए। अधिनायकवादी शासनों में राजनीतिक उथलपुथल की आशंका अधिक है। इसमें चीन, अमेरिका और ईरान आदि शामिल हैं। अंत में हम सामान्य समय से नहीं गुजर रहे हैं। ऐसे में आर्थिक चरों के बीच पारंपरिक मूल्य और रिश्ते कारगर नहीं होंगे। इन ऐतिहासिक रिश्तों का इस्तेमाल करने वाले चकित होंगे। यह ऐसा समय है जब एकाधिक अनुशासनों में विचार करना होगा तथा ऐसी व्यवस्था पर नजर डालनी होगी जो अनुशासन की सीमाओं को नहीं मानती।
हम 2023 के लिए पूर्वानुमान पर विचार करते हैं तो हल्की वैश्विक मंदी को लेकर लगभग आम सहमति है। अमेरिकी मौद्रिक नीति, चीन की आर्थिक स्थिति, उच्च कर्ज, यूरोप में सुधार की राह और अप्रत्याशित संकट ही 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देंगे। भारत के रणनीतिकारों को उन पर नजर रखनी होगी, उनमें से प्रत्येक को लेकर एक नजरिया विकसित करना होगा, यह विचार करना हागा कि कैसे वैकल्पिक परिदृश्य उसके उद्देश्यों को प्रभावित करेगा और साथ ही कई विपरीत परिस्थितियों के लिए रक्षात्मक रणनीति बनानी होगी।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)
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