स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Teaching):-

शिक्षा एक जटिल प्रक्रिया है जिसे अनगिनत तत्व प्रभावित करते हैं। यदि शिक्षक की शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली नहीं रहेगी तो छात्र कुछ सीख नहीं पाएंगे और अंततः अधिगम की अधिकता हेतु शिक्षण का प्रभावी होना आवश्यक है।

1.स्वीय कारक (Personal Factors):-

(1).पारिवारिक परिस्थितियां:-

इन सभी बातों का शिक्षक के मन पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जो बातें शिक्षक के मन को अनुकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को प्रभावी बनाती है और जो बातें उसके मन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को अप्रभावी बनाती है।

(2).विद्यालयी परिस्थितियां:-

विद्यालयी परिस्थितियों के अंतर्गत भी शिक्षकों के अपने अन्य साथियों, शाला प्रधान,प्रशासक आदि के साथ संबंध यदि ठीक है तो वे शिक्षण को अनुकूल रूप से प्रभावित करते हैं, किंतु यदि ठीक नहीं है तो वें उसके शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

2.बौद्धिक कारक (Intellectual Factors) :-

बुद्धि एक ऐसा अमूर्त तत्व है जो जितना किसी भी प्रकार के रचनात्मक कौशल के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही शिक्षण के लिए भी, क्योंकि शिक्षण सर्वाधिक प्रभावी तब ही हो सकता है,जब शिक्षक,स्वयं को कक्षा की परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सके और यह कार्य उस समय तक संभव नहीं जब तक शिक्षक का बौद्धिक स्तर उच्च न हो।

अधिक नहीं तो प्रत्येक कक्षा में कुछ छात्र तो ऐसे मिल ही जाते हैं जो बौद्धिक दृष्टि से कहीं अधिक प्रखर होते हैं। इन छात्रों की जिज्ञासाओं को भी वही शिक्षक शांत कर पाता है जो स्वयं भी बौद्धिक दृष्टि से प्रखर हो।

शिक्षक बौद्धिक दृष्टि से जितना उच्च स्तर का होगा,उसका शिक्षण सामान्य उतना ही अधिक प्रभावी होगा। यदि शिक्षक प्रखर बुद्धि है तो –

(घ).वह इस स्थिति का कहीं सुलभ ढंग से निर्णय लें सकेगा कि कहां तर्क से काम लेना है और कहां अनुभव आधारित ज्ञान से।

(ड). यदि कोई बात ऐसी है जिसे वह स्वयं नहीं जानता तो उसे स्वयं और जल्दी सीखकर शिक्षार्थियों को बता देगा।

शिक्षक के बौद्धिक कारक को शिक्षण के नियोजन के रुप में व्यक्त किया जा सकता है। शिक्षक इसके अन्तर्गत तीन क्रियाओं को पूर्ण करता है –

(1). कार्य का विश्लेषण (Analysis of the Task):-

शिक्षक को अपने कार्य की वास्तविक प्रकृति के बारे में समुचित ज्ञान होने के लिए कार्य के विश्लेषण की योग्यता होनी चाहिए। कार्य विश्लेषण की निम्नलिखित विशेषताएं शिक्षक को प्रभावित करती है –

2. शिक्षण उद्देश्यों की पहचान करना (Identification of Teaching Objectives):-

शिक्षक द्वारा शिक्षण के लिए उद्देश्यों की पहचान के बिना अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता है। अतः शिक्षण उद्देश्यों की पहचान के द्वारा शिक्षक का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। शिक्षण उद्देश्यों की आवश्यकता पुस्तक के निर्माण से प्रारंभ होती है और छात्रों के मूल्यांकन तक जारी रहती है।

3.अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना (Writing of Learning of Objectives in Behavioural):-

शिक्षक द्वारा अपने शिक्षण कार्य को अपेक्षाकृत वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक बनाने के लिए अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप से लिखने की आवश्यकता होती है। क्यों शिक्षण को निम्नलिखित रुप में सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है –

मनोवैज्ञानिक कारक :-

मनोवैज्ञानिक कारकों के तहत अभिक्षमता, रुचि, अभिवृत्ति, मूल प्रवृत्तियां, भावना ग्रंथियां कारक आते हैं।

अभिक्षमता :-

शिक्षक की बहुत तकलीफ सकती है जो उसे किसी कार्य के प्रति उन्मुख करती है। इसी आधार पर कोई इंजीनियरिंग के कार्य की पसंद करता है तो कोई डॉक्टरी करना। कोई समाज सेवा करना पसंद करता है तो कोई अध्यापन। यहां पर एक बात दृष्टिव्य है कि यदि कोई शिक्षक किसी भौतिक प्रलोभन के कारण किसी व्यवसाय या कार्य को पसंद करता है तो वह उसकी अभिक्षमता ना कह लाकर अभिवृत्ति कहलाती है। शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की और नही होगा, वह अच्छा शिक्षक बन सके-यह कम ही संभव है। इससे दूसरी और जिस शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की ओर है, वह यदि अच्छा शिक्षक नहीं है तो प्रयास करने पर अच्छा शिक्षक बन सकता है।

रुचि :-

रुचि एक ऐसा तत्व है जो किसी भी बात को सीखने और किसी भी काम को करने की पूर्व आवश्यकता है। शिक्षक कितना ही बुद्धिमान और अभिक्षमता वाला क्यों ना हो, उसकी यदि पढ़ाने में रुचि नहीं है तो वह कक्षा में शारीरिक रूप से चला भले ही जाए पढ़ा नहीं पाएगा।

अभिवृत्ति :-

अभिवृत्ति रुचिका ही प्रगाढ रूप है। जिस कार्य में हमारी रुचि होती है, उस में रुचि लेते-लेते वह हमारी अभिवृत्ति बन जाती है। मानव मन की वह दशा जो अध्यापन की ओर उन्मुख या विमुख करें वही उसकी अभिवृत्ति है।

संवेग:-

हमने संभागों के भी दो रूप देखे थे – 1. जिज्ञासा, साहस आदि धनात्मक संवेग 2. घृणा, भय आदि ऋणात्मक संवेग। धनात्मक संवेगो की,कार्य करने वाले के मन में रचनात्मक होती है और ऋणात्मक संवेगों की प्रतिक्रिया ध्वंसात्मक होती है। संवेग चाहे वे धनात्मक हों या ऋणात्मक,शिक्षक के मन को भी इसी रुप में प्रभावित करते हैं।

भावना ग्रन्थियां :-

भावना ग्रंथियां भी शिक्षण को प्रतिकूल रूप से ही प्रभावित करती है। जब कोई अच्छा शिक्षक स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है तो उसमें अहं जागृत हो जाता है।अहं के पनपने पर उसका अध्ययन टूट जाता है। अध्ययन टूटने पर अध्यापन में धीरे-धीरे वह कुशलता कम होने लगती है जो उसने पहले अर्जित की थी। यही हाल हीनभावना की है। जब कोई शिक्षक स्वयं को अन्य शिक्षकों की तुलना में हीन समझने लगता है तो उसकी अध्यापन कुशलता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। इस प्रकार दोनों ही प्रकार की भावना ग्रंथियां, शिक्षक को ऋणात्मक रूप से प्रभावित करती है।

कौन सा व्यक्तित्व परीक्षण नैदानिक निदान के लिये वैध है?

Key Points व्यक्तित्व परीक्षण की आवश्यकता पहली बार प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महसूस की गई थी जब भावनात्मक रूप से अस्थिर सैनिकों की जांच की जानी थी।

महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले व्यक्तित्व परीक्षण निम्न हैं:

  • मिनेसोटा बहुभाषी व्यक्तित्व सूची​ (MMPI) - यह परीक्षण मूल रूप से 1940 में हैथवे और मैक किनले द्वारा विकसित किया गया था जिसमें 550 मद शामिल हैं, जिनका उत्तर "हां", "नहीं" और "कह नहीं सकता" था।
    • इसका उपयोग नैदानिक निदान के लिए भी किया जाता है।

    इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि मिनेसोटा बहुभाषी व्यक्तित्व सूची (MMPI)​ एक व्यक्तित्व परीक्षण है जो नैदानिक निदान के लिए वैध है।

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    Last updated on Sep 29, 2022

    Rajasthan 3rd Grade Teacher Recruitment for Level 1 & Level 2 will be done through REET 2022 Scores. 48,000 vacancies have been released for this recruitment. Earlier, the REET 2022 Certificate Notice is out, for candidates on 6th December 2022! Candidates can download the certification through the official certificate link. REET 2022 Written Exam Result was out on 29th September 2022! The final answer key was also out with the result. The exam was conducted on the 23rd and 24th of July 2022. The candidates must go through the REET Result 2022 to get the direct link and detailed information on how to check the result. The candidates who will be finally selected for 3rd Grade Teachers are expected to receive Rs. 23,700 as salary. Then, the candidates will have to serve a probation period which will last for 2 years. Also, note during probation, the teachers will receive only the basic salary.

    स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory

    स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory

    परिचय (Introduction) –

    स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :

    स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत

    उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं

    बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।

    सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ के मूल हैं।

    विशिष्ट कारक – जो विशिष्ट कार्यो में सहायता करते हैँ।

    G Factor मानसिक क्रियाओं का मूल हैं। अर्थात जिस व्यक्ति में G Factor उपस्थित है वही अपनी मानसिक क्रियाओं को कर सकता है।

    और इसके अतिरिक्त विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट कारक उपस्थित होते हैं

    सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है

    1. स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को कारक विश्लेषण तकनीक मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
    2. यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
    3. प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
    4. G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।

    विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )

    विशिष्ट कारक अर्थत जिसके पास G कारक है वो मानसिक कार्य कर सकता है परन्तु इस G कारक के अतिरिक्त हर व्यक्ति के पास एक विशिष्ट कारक या विभिन्न प्रकार के विशिष्ट कारक हो सकते है। प्रत्येक मानसिक कार्य को करने में कुछ विशिष्टता( Specificity ) की आवश्यकता होती है। क्योकि, प्रत्येक मानसिक कार्य एक दुसरे से अलग अलग होती हैं। स्पीयरमेन ने इसे विशिष्ट कारक ( S – कारक ) की संज्ञा दी हैं।

    विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )

    विशिष्ट कारक की विशेषताएं :

    1. S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
    2. विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।

    3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।

    इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।

    1. S – कारक का स्थानान्तरण एक विषय से दूसरे विषय में नही हो सकता G – कारक द्वारा हम के विषय से दुसरे विषय में जा सकते है, परन्तु जरुरी नही है जिसे गाना गाना अता हो वह पेन्टीग भी अच्छा करता हो।

    स्पीयरमेन ने G – कारक और S – कारक के बीच में संबंध बताने के लिए : सहसंबंध विधि द्वारा समर्थन लिया ( Evidence by correlation method )

    इस में स्पीयरमेन ने correlation method से Evidence दिए :

    स्पीयरमेन ने G व S कारकों के बीच सम्बन्ध बताया। इन्होने भिन्न भिन्न तरह की मानासिक क्षमता मापने वाले टेस्ट किए, जैसे शाब्दिक बोध पर परिक्षण, स्मृति परिक्षण, विवेक परिक्षण आदि को व्यकितयों के एक बड़े समूह पर क्रियान्वन किया, और इन परीक्षणों के बीच सहसंबध ज्ञात किया।

    शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Teaching):-

    शिक्षा एक जटिल प्रक्रिया है जिसे अनगिनत तत्व प्रभावित करते हैं। यदि शिक्षक की शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली नहीं रहेगी तो छात्र कुछ सीख नहीं पाएंगे और अंततः अधिगम की अधिकता हेतु शिक्षण का प्रभावी होना आवश्यक है।

    1.स्वीय कारक (Personal Factors):-

    (1).पारिवारिक परिस्थितियां:-

    इन सभी बातों का शिक्षक के मन पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जो बातें शिक्षक के मन को अनुकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को प्रभावी बनाती है और जो बातें उसके मन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को अप्रभावी बनाती है।

    (2).विद्यालयी परिस्थितियां:-

    विद्यालयी परिस्थितियों के अंतर्गत भी शिक्षकों के अपने अन्य साथियों, शाला प्रधान,प्रशासक आदि के साथ संबंध यदि ठीक है तो वे शिक्षण को अनुकूल रूप से प्रभावित करते हैं, किंतु यदि ठीक नहीं है तो वें उसके शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

    2.बौद्धिक कारक (Intellectual Factors) :-

    बुद्धि एक ऐसा अमूर्त तत्व है जो जितना किसी भी प्रकार के रचनात्मक कौशल के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही शिक्षण के लिए भी, क्योंकि शिक्षण सर्वाधिक प्रभावी तब ही हो सकता है,जब शिक्षक,स्वयं को कक्षा की परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सके और यह कार्य उस समय तक संभव नहीं जब तक शिक्षक का बौद्धिक स्तर उच्च न हो।

    अधिक नहीं तो प्रत्येक कक्षा में कुछ छात्र तो ऐसे मिल ही जाते हैं जो बौद्धिक दृष्टि से कहीं अधिक प्रखर होते हैं। इन छात्रों की जिज्ञासाओं को भी वही शिक्षक शांत कर पाता है जो स्वयं भी बौद्धिक दृष्टि से प्रखर हो।

    शिक्षक बौद्धिक दृष्टि से जितना उच्च स्तर का होगा,उसका शिक्षण सामान्य उतना ही अधिक प्रभावी होगा। यदि शिक्षक प्रखर बुद्धि है तो –

    (घ).वह इस स्थिति का कहीं सुलभ ढंग से निर्णय लें सकेगा कि कहां तर्क से काम लेना है और कहां अनुभव आधारित ज्ञान से।

    (ड). यदि कोई बात ऐसी है जिसे वह स्वयं नहीं जानता तो उसे स्वयं और जल्दी सीखकर शिक्षार्थियों को बता देगा।

    शिक्षक के बौद्धिक कारक को शिक्षण के नियोजन के रुप में व्यक्त किया जा सकता है। शिक्षक इसके अन्तर्गत तीन क्रियाओं को पूर्ण करता है –

    (1). कार्य का विश्लेषण (Analysis कारक विश्लेषण तकनीक of the Task):-

    शिक्षक को अपने कार्य की वास्तविक प्रकृति के बारे में समुचित ज्ञान होने के लिए कार्य के विश्लेषण की योग्यता होनी चाहिए। कार्य विश्लेषण की निम्नलिखित विशेषताएं शिक्षक को प्रभावित करती है –

    2. शिक्षण उद्देश्यों की पहचान करना (Identification of Teaching Objectives):-

    शिक्षक द्वारा शिक्षण के लिए उद्देश्यों की पहचान के बिना अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता है। अतः शिक्षण उद्देश्यों की पहचान के द्वारा शिक्षक का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। शिक्षण उद्देश्यों की आवश्यकता पुस्तक के निर्माण से प्रारंभ होती है और छात्रों के मूल्यांकन तक जारी रहती है।

    3.अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना (Writing of Learning of Objectives in Behavioural):-

    शिक्षक द्वारा अपने शिक्षण कार्य को अपेक्षाकृत वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक बनाने के लिए अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप से लिखने की आवश्यकता होती है। क्यों शिक्षण को निम्नलिखित रुप में सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है –

    मनोवैज्ञानिक कारक :-

    मनोवैज्ञानिक कारकों के तहत अभिक्षमता, रुचि, अभिवृत्ति, मूल प्रवृत्तियां, भावना ग्रंथियां कारक आते हैं।

    अभिक्षमता :-

    शिक्षक की बहुत तकलीफ सकती है कारक विश्लेषण तकनीक जो उसे किसी कार्य के प्रति उन्मुख करती है। इसी आधार पर कोई इंजीनियरिंग के कार्य की पसंद करता है तो कोई डॉक्टरी करना। कोई समाज सेवा करना पसंद करता है तो कोई अध्यापन। यहां पर एक बात दृष्टिव्य है कि यदि कोई शिक्षक किसी भौतिक प्रलोभन के कारण किसी व्यवसाय या कार्य को पसंद करता है तो वह उसकी अभिक्षमता ना कह लाकर अभिवृत्ति कहलाती है। शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की और नही होगा, वह अच्छा शिक्षक बन सके-यह कम ही संभव है। इससे दूसरी और जिस शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की ओर है, वह यदि अच्छा शिक्षक नहीं है तो प्रयास करने पर अच्छा शिक्षक बन सकता है।

    रुचि :-

    रुचि एक ऐसा तत्व है जो किसी भी बात को सीखने और किसी भी काम को करने की पूर्व आवश्यकता है। शिक्षक कितना ही बुद्धिमान और अभिक्षमता वाला क्यों ना हो, उसकी यदि पढ़ाने में रुचि नहीं है तो वह कक्षा में शारीरिक रूप से चला भले ही जाए पढ़ा नहीं पाएगा।

    अभिवृत्ति :-

    अभिवृत्ति रुचिका ही प्रगाढ रूप है। जिस कार्य में हमारी रुचि होती है, उस में रुचि लेते-लेते वह हमारी अभिवृत्ति बन जाती है। मानव मन की वह दशा जो अध्यापन की ओर उन्मुख या विमुख करें वही उसकी अभिवृत्ति है।

    संवेग:-

    हमने संभागों के भी दो रूप देखे थे – 1. जिज्ञासा, साहस आदि धनात्मक संवेग 2. घृणा, भय आदि ऋणात्मक संवेग। धनात्मक संवेगो की,कार्य करने वाले के मन में रचनात्मक होती है और ऋणात्मक संवेगों की प्रतिक्रिया ध्वंसात्मक होती है। संवेग चाहे वे धनात्मक हों या ऋणात्मक,शिक्षक के मन को भी इसी रुप में प्रभावित करते हैं।

    भावना ग्रन्थियां :-

    भावना ग्रंथियां भी शिक्षण को प्रतिकूल रूप से ही प्रभावित करती है। जब कोई अच्छा शिक्षक स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है तो उसमें अहं जागृत हो जाता है।अहं के पनपने पर उसका अध्ययन टूट जाता है। अध्ययन टूटने पर अध्यापन में धीरे-धीरे वह कुशलता कम होने लगती है जो उसने पहले अर्जित की थी। यही हाल हीनभावना की है। जब कोई शिक्षक स्वयं को अन्य शिक्षकों की तुलना में हीन समझने लगता है तो उसकी अध्यापन कुशलता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। इस प्रकार दोनों ही प्रकार की भावना ग्रंथियां, शिक्षक को ऋणात्मक रूप से प्रभावित करती है।

    Child Devolpment Important Theory for CTET,UPTET,UKTET,RTET,PTET,BIHAR TET

    बाल विकास से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सिध्दान्त उपलब्ध करा रहें हैं , जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगें, अतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !

    Imp . CTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc

    गिलफोर्ड का सिध्दान्त

    • संक्रिय का अर्थ यहाँ हमारी उस मानसिक चेष्टा, तत्परता और कार्यशीलता से होता है जिसकी मद्द से हम किसी भी सूचना सामाग्री या विषय-वस्तु को अपने चिन्तन तथा मनन का विषय बनाते है या दूसरे शब्दों में इसे चिन्तन तथा मनन का प्रयोग करते हुए अपनी बुध्दि को काम में लाने का प्रयास कहा जा सकता है !
    • जे.पी गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुध्दि परिक्षण से सम्बंधित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण तकनीक का प्रयोग करते हुए मानव बुध्दि के विभिन्न तत्वों या कारकों को प्रकाश लाने वाला प्रतिमान विकसित किया !
    • उन्होंनें अपने अध्ययन प्रयासों के द्वारा यह प्रतिपादित करने की चेष्टा की कि हमारी किसी भी मानसिक प्रक्रिया अथवा बौध्दिक कार्य को तीन आधारभूत आयामों – संक्रिय, सूचना सामग्री या विषय-वस्तु तथा उत्पादन में विभाजित किया जा सकता है !
    Child Devolpment Important Theory set– 1 Click here

    फ्लूइड तथा क्रीस्टलाइज्ड सिध्दान्त

    • इस सिध्दान्त के प्रतिपादन कैटिल है ! फ्लूइड वंशानुक्रम कार्य कुशलता अथवा केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की दी हुए विशेषता पर आधारित एक सामान्य योग्यता है ! यह योग्यता संस्कृति से ही प्रभावित नहीं होती बल्कि नवीन परिस्थोतियों से भी प्रभावित होती है !
    • दूसरी ओर क्रिस्टलाइज्ड भी एक प्रकार की सामान्य योग्यता है जो अनुभव, अधिगम तथा वातावरण सम्बन्धी कारकों पर आधारित होती है

    Child Devolpment Important Theory – 2 Click here

    ग्रुप-तत्व सिध्दान्त

    • ग्रुप तत्व सिध्दान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह सामान्य तत्व की धारणा का खण्डन करता है !
    • जो तत्व सभी प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं होते परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य होते है, उन्हें ग्रुप-तत्व की संज्ञा डी गई है !
    • इस सिध्दान्त के समर्थकों में थर्सटन नाम प्रमुख है ! प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परिक्षण करते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रमुख तत्व सामान्य रूप से विद्यमान होता है, जो उन क्रियाओं के कई ग्रुप होते है, उनमें अपना एक प्रमुख तत्व होता है !

    Child Devolpment Important Questions Set – 6 Click here

    प्रतिदर्श सिध्दान्त

    • प्रतिदर्श सिध्दान्त के अनुसार बुध्दि कई स्वतन्त्र तत्वों से बनी होती है कोई विशिष्ट परिक्षण या विद्यालय सम्बन्धी क्रिया में इनमें से कुछ तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है ! यह भी हो सकता है कि दो या अधिक परीक्षाओं में एक ही प्रकार के तत्व दिखाई दें तब उनमें एक सामान्य तत्व की विद्यमानता मानी जाती है ! यह भी सम्भव है कि अन्य परीक्षाओं में विभिन्न तत्व दिखाई दें तब उनमें कोई भी तत्व सामान्य नहीं होगा और प्रत्येक तत्व अपने आप में विशिष्ट होगा !
    • इस सिध्दान्त का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था ! उसने अपने इस सिध्दान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के ध्दी-कारक सिध्दान्त के विरोध में किया था !
    • थॉमसन ने इस बात का तर्क दिया की व्यक्ति का बौध्दिक व्यवहार अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, किन्तु इस स्वतन्त्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है !

    Child Devolpment Important Questions Set – 5 Click here

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