Independence Day 2022: जानिए कैसे 75 वर्षों में एक डॉलर के मुकाबले 4 से 80 के लेवल तक गिरा रुपया
Independence Day 2022: 75 वर्षों में भारतीय करेंसी रुपये ने 4 से लेकर 80 रुपये तक का सफर तय किया है.
By: ABP Live | Updated at : 15 Aug 2022 05:21 PM (IST)
Journey Of Rupee: आजादी की 75वीं सालगिरह भारत मना रहा है. बीते 75 वर्षों में भारत ने आर्थिक तौर पर बहुत प्रगति की है. अब भारत को 2047 में विकसित अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन इन 75 वर्षों में भारतीय करेंसी ने भी एक बड़ा सफर तय किया है. किसी भी देश की करेंसी को उस देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को मापने के बैरोमीटर के तौर पर देखा जाता है. 75 वर्षों में भारतीय करेंसी रुपया ने 4 से लेकर 80 रुपये तक का सफर तय किया है.
जब 1947 भारत को आजादी मिली तब एक डॉलर का वैल्यू 4 रुपये के बराबर था. उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में ने काफी उतर चढ़ाव देखा. आर्थिक संकट से लेकर अनाज और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में कमी का सामना करना विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण पड़ा. भारत-चीन युद्ध और भारत पाकिस्तान युद्ध के चलते भुगतान संकट खड़ा हो गया. महंगे आयात बिल के चलते भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो कुता था. भारत डिफॉल्ट करने के कगार पर था. तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रुपये का अवमुल्यन करने का निर्णय लिया जिसके बाद एक डॉलर का मुकाबले रुपये का वैल्यू 4.76 से घटकर 7.5 रुपये पर आ गया.
1991 में एक बार फिर भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के बादल में घिरा था. आयात जरुरतों को पूरा करने के लिए भारत के पास विदेशी मुद्रा नहीं विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण था. कर्ज की अदाएगी के लिए भी पैसे नहीं थे. भारत फिर डिफॉल्ट होने की कगार पर था. जिसके बाद ऐतिहासिक आर्थिक सुधार विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण का फैसला लिया गया.
संकट को टालने के लिए आरबीआई ने दो चरणों में रुपये का अवमुल्यन किया. पहले 9 फीसदी और बाद में 11 फीसदी. इस अवमुल्यन के बाद एक डॉलर के मुकाबले रुपये का वैल्यू 26 रुपये हो गया. यानि आजादी के 75 वर्षों में रुपया 4 रुपये से 79 से 80 रुपये के लेवल तक आ गया. यानि 75 सालों में रुपया 75 रुपया कमजोर हुआ है. रुपये में कमजोरी के कई कारण हैं. कच्चे तेल के बढ़ते आयात के चलते व्यापार घाटा बढ़ता चला गया. जो 31 अरब डॉलर के करीब जा पहुंचा है. जबकि जब आजादी मिली को भारत को कोई घाटा नहीं हो रहा था.
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2008 में दुनिया भर में आए वित्तीय संकट के चलते रुपया और कमजोर होता गया. 2009 में जो रुपया 46.4 के लेवल पर था जो 2022 में घटकर 79.5 रुपये के लेवल पर आ गया. लेकिन अब रुपये के अवमुल्यन की संभावना ना के बराबर है. क्योंकि आरबीआई के पास विदेशी मुद्रा भंडार की कोई अब कमी नहीं है.
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Published at : 15 Aug 2022 05:21 PM (IST) Tags: RBI Rupee forex reserve economic reform Independence Day 2022 Indian National Currency Rupee Devaluation हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण
मुंबई : अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया सोमवार को विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण तीन पैसे बढ़कर 81.68 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
घरेलू शेयर बाजार में मजबूती के रुख और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण निवेशकों की कारोबारी धारणा में सुधार से रुपये की विनियम दर में मजबूती आई।
बाजार सूत्रों के अनुसार, डॉलर के कमजोर होने तथा विदेशी संस्थागत निवेशकों का निवेश बढ़ने के कारण भी रुपये को समर्थन प्राप्त हुआ।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.81 पर विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण खुला। कारोबार के दौरान यह 81.61 के उच्चस्तर और 81.83 के निचले स्तर तक गया। अंत में रुपया तीन पैसे के विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण सुधार के साथ 81.68 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विदेशी मुद्रा और सर्राफा विश्लेषक गौरांग सोमैया ने कहा, ‘‘रुपया सीमित दायरे में कारोबार करता रहा और पिछले कुछ सत्रों में उतार-चढ़ाव कम रहा। पिछले कुछ सत्रों में बढ़त के बाद यूरो और पाउंड आज नीचे चले गए। कोविड के मामलों में वृद्धि के बीच सुरक्षित निवेश में खरीदारी के कारण येन में तेजी आई।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि रुपया एक दिशा में बढ़ेगा और 81.40 और 82.05 प्रति डॉलर के दायरे में रहेगा।’’
इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.35 प्रतिशत की गिरावट के साथ 105.59 पर रह गया।
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 3.10 प्रतिशत घटकर 81.04 डॉलर प्रति बैरल रह गया।
बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 211.16 अंक बढ़कर 62,504.80 अंक पर बंद हुआ।
Rupee At All Time Low : रूस-यूक्रेन युद्ध का असर, रुपये में आई रिकॉर्ड गिरावट
रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 23 पैसे टूटकर 76.17 पर बंद हुआ था. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.29 प्रतिशत बढ़कर 98.93 के स्तर पर आ गया.
रुपये में आई रिकॉर्ड गिरावट
रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ने के बीच निवेशकों द्वारा डॉलर के रूप में सुरक्षित ठिकाना खोजने से रुपया सोमवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 81 पैसे की जोरदार गिरावट के साथ 76.98 पर आ गया. विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच बढ़ते तनाव ने कच्चे तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की है, जिससे घरेलू मुद्रास्फीति और व्यापार घाटे को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं.
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इसके अलावा विदेशी कोषों के लगातार बाहर जाने और घरेलू शेयर बाजार में गिरावट से भी निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 76.85 पर खुला, और पिछले बंद भाव के मुकाबले 81 पैसे की गिरावट दर्ज करते हुए 76.98 पर आ गया.
रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 23 पैसे टूटकर 76.17 पर बंद हुआ था. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.29 प्रतिशत बढ़कर 98.93 के स्तर पर आ गया. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 9.38 प्रतिशत उछलकर 129.19 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था.
शेयर बाजारों में सोमवार को लगातार चौथे कारोबारी सत्र में गिरावट देखी गई. इस दौरान 30 शेयरों वाला सेंसेक्स कमजोर रुख के साथ खुला और 1,620.73 अंक या 2.98 प्रतिशत की गिरावट के साथ 52,713.08 पर आ गया. इसी तरह व्यापक एनएसई निफ्टी 447.05 अंक या 2.75 प्रतिशत टूटकर 16,000 के स्तर से नीचे 15,798.30 पर आ गया. सेंसेक्स में सबसे अधिक गिरावट दर्ज करने वाले शेयरों में मारुति सुजुकी, महिंद्रा एंड महिंद्रा, लार्सन एंड टुब्रो और आईसीआईसीआई बैंक शामिल थे. पिछले कारोबारी सत्र में सेंसेक्स 768.87 अंक यानी 1.40 फीसदी की गिरावट के साथ 54,333.81 पर बंद हुआ था। इसी तरह एनएसई निफ्टी 252.70 अंक या 1.53 प्रतिशत टूटकर 16,245.35 पर बंद हुआ था.
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बाइनरी विकल्प: सबसे पहले कदम
आज मैं एक ऐसे विषय पर चर्चा करना चाहूंगा जो हर किसी को जल्द या बाद में मिल जाएगा। मेरा मतलब दुविधा है - जब वास्तव में निवेश करना शुरू करें? कई लोग अलग-अलग परिणामों के साथ महीनों तक डेमो खाते से खेलते हैं - कभी सकारात्मक, कभी नकारात्मक। हालांकि, कुछ लोग जमा करना पसंद करते हैं। मैं आंशिक रूप से समझता हूं क्योंकि ब्रोकर अक्सर पोलिश परिस्थितियों के लिए बड़ी मात्रा में कॉल करते हैं। हालांकि, यह नियम नहीं है और कई अपवाद हैं। मैं यहां विशिष्ट दलालों के नाम नहीं फेंकना चाहता, लेकिन अगर आप मुझे कुछ समय से जानते हैं, तो आप जानते हैं कि मैं किस ब्रोकर का उपयोग करता हूं - इस ब्रोकर के पास न्यूनतम जमा $ 10 है।
बहुत सारे लोगों का रवैया खराब है। कई लोग कहते हैं कि वे शेयर बाजार में बहुत पैसा बनाने के लिए तैयार नहीं हैं - यह एक गलती है। बेशक आपको बड़ा सोचना है, लेकिन अगर आपने कभी भी बाजारों में पैसा नहीं कमाया है विदेशी मुद्रा यहां तक कि अगर आप 300 अर्जित करते हैं, तो यह एक सफलता और अतिरिक्त पूंजी होगी, जिसे आप पुनर्निवेश कर सकते हैं। मैं यह पोस्ट नहीं चाहता हूं कि आपकी इच्छा के खिलाफ जमा करने के लिए मजबूरी की तरह आवाजें हों। मैं आपको यह जानना चाहता हूं कि अगर आप डेमो खाते में चैंपियन हैं, तो आप असली खाते के चेहरे में एक पूरी तरह से अलग खिलाड़ी होंगे। शायद यह धीरे-धीरे लायक है कि जोखिम उठाने के लिए, छोटी राशि का भुगतान करें और छोटी रकम खेलें? कोई भी नहीं कहता है कि आपको एक प्ले पर $ XNUM डॉलर जमा करना होगा और $ 250 का निवेश करना होगा। आप $ 10 का भुगतान कर सकते हैं और एक डॉलर के साथ खेल सकते हैं।
बेशक, यह 4% नियम के खिलाफ है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर निवेश के बारे में नहीं है। इस अभ्यास का कार्य आपको जोखिमों से परिचित करना है, ताकि आप बड़ी मात्रा में भी अधिक तनाव महसूस न करें। आप एक तरह के निवेश के रूप में भुगतान की गई राशि का इलाज कर सकते हैं। मान लीजिए कि आप $ 25 जमा करते हैं - भले ही आप उस पैसे को खो दें, आप हारने के लिए अपने शरीर को सख्त कर देंगे और इससे कुछ सकारात्मक प्राप्त कर सकते हैं। बेशक, आप इस पैसे को भोजन, शराब या मस्ती पर खर्च कर सकते हैं, लेकिन एक क्षणिक आनंद के अलावा, आपको इससे अधिक कुछ नहीं मिलेगा। इसके बारे में सोचें।
इस वजह से भारतीय रुपये में आई जोरदार मज़बूती, सरकार के साथ-साथ आम आदमी को मिलेगी बड़ी राहत
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- News18Hindi
- Last Updated : June 03, 2020, 12:39 IST
मुंबई. दुनियाभर की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की करेंसी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये (Indian Rupee Surge against US Dollar) में जोरदार तेजी आई है. अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के मुकाबले पिछले एक हफ्ते में ये एक फीसदी से ज्यादा मज़बूत हुआ है. आपको बता दें कि भारतीय रुपये की मजबूती (Indian Currency) का सीधा असर पेट्रोल-डीज़ल की कीमत पर होता है. क्योंकि भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी विदेश से खरीदता है. ऐसे में भारतीय तेल कंपनियों को विदेश से कच्चा तेल खरीदने के लिए कम डॉलर खर्च करने होंगे. लिहाजा इसका फायदा घरेलू ग्राहकों को भी मिलेगा.
क्यों आई रुपये में मज़बूती- एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों ने जमकर पैसा लगाया है. इसका असर ही भारतीय रुपये पर दिख रहा है. जून के पहले दो दिन में ही विदेशी निवेशकों ने कुल 9,073.75 करोड़ रुपये का निवेश किया है. वहीं, मई महीने में कुल 13,914.49 करोड़ रुपये भारतीय शेयर बाजार में डाले. जबकि, जनवरी में 5359 करोड़ रुपये, फरवरी में 12,684 करोड़ रुपये, मार्च में 65816 करोड़ रुपये और अप्रैल महीने में 5208 करोड़ रुपये शेयर बाजार से निकाले थे.
क्या आगे भी रुपये में मज़बूती आएगी- एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा समय में रुपया और मज़बूत हो सकता है. इसके 74.80 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
आम आदमी पर क्या होगा असर
>> भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात करता है.
>> रुपये में मजबूती से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात सस्ता हो जाएगा.
>> तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में कमी कर सकती हैं.
>> डीजल के दाम गिरने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण कमी आ सकती है.
>> इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है.
>> रुपये के मजबूत होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें घट सकती हैं.
कैसे मजबूत और कमजोर होता है भारतीय रुपया
रुपये की कीमत पूरी तरह डिमांड एवं सप्लाई पर निर्भर करती है. इस पर इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का भी असर पड़ता है. हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं. इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते विदेशी मुद्रा पर पैसा बनाने के लिए चरण हैं. समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं.
(1) अगर आसान शब्दों में समझें तो मान लीजिए भारत अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहा हैं. अमेरिका के पास 67,000 रुपये हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 67 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,700 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.
(2) अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 67,000 रुपये थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.
(3) अगर भारत इतनी ही इनकम यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतरराष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं. इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.
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