नेपल्स में एक यॉट चार्टर कहाँ से शुरू करें?

कम सीज़न के दौरान इटली यॉट चार्टर्स $1,110 प्रति दिन और $13,974 प्रति सप्ताह से शुरू हो सकते हैं। उच्च सीज़न के दौरान किराये की कीमत $2,995 प्रति दिन और $10,606 प्रति सप्ताह से हो सकती है। लक्ज़री याच की कीमत और भी अधिक हो सकती है, एक नौका दलाल क्या करता है? कुछ की कीमत 24,830 डॉलर से शुरू होती है।

अमाल्फी तट पर एक नौका किराए पर लेने में कितना खर्च होता है?

अमाल्फी तट पर एक नौका किराए पर लेना कम मौसम में प्रति दिन 1786 डॉलर और उच्च मौसम में प्रति दिन $ 2,214 से खर्च होता है। अमाल्फी कोस्ट यॉट चार्टर की लागत कम सीज़न में प्रति सप्ताह $6,074 और उच्च सीज़न में $7,213 प्रति सप्ताह है।

इटली में एक निजी नौका किराए पर लेने में कितना खर्च आता है?

कम सीज़न के दौरान इटली यॉट चार्टर्स $1,110 प्रति दिन और $13,974 प्रति सप्ताह से शुरू हो सकते हैं। उच्च सीज़न के दौरान किराये की कीमत $2,995 प्रति दिन और $10,606 प्रति सप्ताह से हो सकती है। लक्ज़री याच की कीमत और भी अधिक हो सकती है, कुछ की कीमत 24,830 डॉलर से शुरू होती है।

एक क्रूड यॉट चार्टर आपके निजी सेल या पावर कटमरैन पर सवार पानी पर अंतिम सर्व-समावेशी अवकाश प्रदान करता है। एक पेशेवर कप्तान और रुचिकर शेफ के साथ पूरा, 10 तक का आपका समूह विशाल आवास और एक प्रीमियम, व्यक्तिगत यॉट चार्टर अनुभव का आनंद लेगा।

एक नौका पर रहने के लिए कितना खर्च होता है?

नाव की कीमत 90,000 डॉलर थी और वे कैरिबियन पर मंडराते हुए और पूरे समय एंकरिंग करते हुए 50,000 डॉलर प्रति वर्ष जीते थे। व्यक्तिगत रूप से, हम प्रति वर्ष लगभग $100,000 पर जीते हैं। मैं $1,000 प्रति माह पर रहने वाले जोड़ों को जानता हूं, और $3,000-$6,000 प्रति माह पर रहने वाले परिवारों को जानता हूं।

आप एक निजी यॉट चार्टर को कितना टिप देते हैं?

सामान्य तौर पर, दलाल नौका और स्थान के आधार पर आधार चार्टर शुल्क के 5 से 20 प्रतिशत के बीच टिपिंग की सलाह देते हैं। यह आमतौर पर मेड में उस पैमाने के निचले सिरे की ओर होता है और यूएस और कैरिबियन में उच्चतर होता है। सुपरयाच चार्टर के अंत में अपने चालक दल को टिप देना एक प्रथागत अभ्यास है।

मैं एक निजी याच कैसे बुक करूं?

पांच आसान चरणों में बुकिंग

  1. एक यॉट चार्टर विशेषज्ञ चुनें। एक विशेषज्ञ खोजें जो आपको प्रक्रिया के साथ सहज महसूस कराता है और जो स्वेच्छा से आपका इनपुट चाहता है।
  2. नौका और गंतव्य का चयन करें।
  3. कागजी कार्रवाई भरें।
  4. यात्रा करने के लिए तैयार करें।
  5. छुट्टी का आनंद लें!

एक निजी नौका चार्टर क्या है?

यॉट चार्टरिंग एक सेलबोट या मोटर यॉट को किराए पर देने, या चार्टर करने और विभिन्न तटीय या द्वीप स्थलों की यात्रा करने की प्रथा है। यह आमतौर पर एक छुट्टी गतिविधि है, लेकिन यह एक व्यावसायिक घटना भी हो सकती है। स्किपर्ड चार्टर का मतलब है कि नौका चालक दल के साथ आती है।

हजारों सीएफटी स्टोन चिप्स व नाव जब्त, एक हिरासत में

अवैध पत्थर खनन व परिवहन मामले में ईडी की कार्रवाई के बावजूद इस धंधे से जुड़े कुछ लोग गड़बड़ करने से बाज नहीं आ रहे.

हजारों सीएफटी स्टोन चिप्स व नाव जब्त, एक हिरासत में

राजमहल। अवैध पत्थर खनन व परिवहन मामले में ईडी की कार्रवाई के बावजूद इस धंधे से जुड़े कुछ लोग गड़बड़ करने से बाज नहीं आ रहे हैं। राजमहल थाना क्षेत्र के कन्हैयास्थान स्थित मुन्नापटाल गंगा घाट से नाव से पश्चिम बंगाल अवैध स्टोन चिप्स की ढुलाई पर शनिवार की सुबह सीओ प्रीति लता किस्कू ने छापेमारी की। छापेमारी में एक नाव व हजारों सीएफटी स्टोन चिप्स जब्त किया।मौके से नाव चालक को भी हिरासत में लिया गया है। सीओ ने बताया कि गुप्त सूचना पर एसडीओ रोशन कुमार साह के निर्देश पर छापेमारी की गई । सूत्रों के अनुसार मंगलहाट से सुखसेना व तालझारी थाना क्षेत्र के मसकलैया गंगा घाट पर रात के अंधेरे में अवैध स्टोन चिप्स की ढुलाई नाव से की जाती है। इधर, एसडीओ रोशन कुमार साह ने कहा कि सीओ के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज कराई जाएगी।अंचल क्षेत्र में जहां भी अवैध कारोबार हो रहा है,वहां भी कार्रवाई की जाएगी।

अमेरिका से बढ़ती दोस्ती का महत्व है

तवलीन सिंह

पिछले सप्ताह अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी एक ऐसे दिन दिल्ली पहुंचे, जब बारिश के पानी ने सारे शहर में कहर मचा दिया था। जॉन केरी को उस अनुभव से गुजरना पड़ा, जिसका दिल्लीवासी हर बारिश में सामना करते हैं। बारिश के कारण लगे जाम में केरी को इतना समय गुजारना पड़ा कि अगले दिन आईआईटी के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने मजाक में कहा कि क्या वे नाव से आए हैं! उनकी इस टिप्पणी से भारतीय शहरों की बेहाल व्यवस्था चर्चा का विषय बन गई। इस विषय पर संपादकीय छपे एक नौका दलाल क्या करता है? और टीवी पर भी चर्चाएं हुईं। सो अमेरिका से जुड़ी असली खबर हम भूल गए।

असली खबर यह है कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते अब इतने मजबूत हो गए हैं कि हमारे रक्षा मंत्री ने पिछले सप्ताह वाशिंगटन में एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे निकट भविष्य में अमेरिकी सैनिक विमान हमारे सैन्य अड्डों से उड़ान भर सकेंगे। एक ऐसा भी समय था, जब हमारे राजनेताओं को अमेरिका से इतनी नफरत थी कि यदि कोई पत्रकार अपने लेख में अमेरिका की तरफदारी करता था, तो उस पर सीआईए का दलाल होने का आरोप लग जाता था। शीतयुद्ध के उस दौर में अमेरिका उन्हीं देशों के साथ दोस्ती करता था, जो युद्ध में उसके साथ सैन्य रिश्ता जोड़ने को तैयार थे। हमारे राजनेता इसके लिए तैयार नहीं थे, जबकि पाकिस्तान के राजनेता जरूरत से ज्यादा तैयार थे। यहां तक कि अयूब खान ने अमेरिकी जासूसी विमानों को पाकिस्तानी जमीन से उड़ान भरने की इजाजत दे दी थी।

ये वे दिन थे, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को भारत की विदेश नीति का आधार बना रखा था। सो भारत को उन्होंने तब तक अमेरिकी खेमे से बाहर रखा, जब तक चीन ने हम पर आक्रमण नहीं किया। उस युद्ध में भारतीय सैनिकों के पास जो हथियार थे, वे सौ साल पुराने थे, जबकि चीनी सैनिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। चीन से युद्ध के दौरान नेहरू ने अमेरिका से सैन्य और आर्थिक सहायता मांगी। इसके पीछे भी एक किस्सा है। चीन के साथ युद्ध शुरू होने से कुछ महीने पहले नेहरू जी इंदिरा गांधी के साथ अमेरिका के दौरे पर गए थे। वहां राष्ट्रपति कैनेडी ने उनकी खूब मेहमाननवाजी की, लेकिन नेहरू जी को बहलाने में वह विफल रहे। कैनेडी भारत के साथ दोस्ती चाहते थे, क्योंकि उनको विश्वास था कि भारत ही चीन जैसे ताकतवर देश का मुकाबला कर सकता है। उनका यह भी मानना था कि भारत चूंकि एक लोकतांत्रिक देश है, इसलिए उसके साथ अमेरिका की दोस्ती स्वाभाविक होनी चाहिए। भारत ने दोस्ती का वह मौका गंवाया और इसकी कीमत अपने जवानों के खून से चुकानी पड़ी। तब यदि हम अमेरिका के दोस्त होते, तो शायद चीन हमला करने का साहस न करता। यदि उसी समय अमेरिका के साथ हमारा रिश्ता मजबूत होता, तो एक दशक बाद बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हुए युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान के बजाय हमारे साथ होता।

नेहरू जी ने विदेश नीति के मोर्चे पर गलतियां कीं, क्योंकि उनके लिए विचारधारा देशहित से ज्यादा अहमियत रखती थी। ऐसे में जब प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिन पहले कहा कि उनकी विदेश नीति का मतलब है भारत का हित या ‘इंडिया फर्स्ट, तो मुझे बहुत अच्छा लगा। सो अब अगर अमेरिका से दोस्ती हो रही है, तो इससे यही समझा जाना चाहिए कि यह दोस्ती भारत के हित में है। इसकी हमें जरूरत है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान एक साथ हैं, और यह हमारे हित में नहीं है।

पिछले सप्ताह अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी एक ऐसे दिन दिल्ली पहुंचे, जब बारिश के पानी ने सारे शहर में कहर मचा दिया था। जॉन केरी को उस अनुभव से गुजरना पड़ा, जिसका दिल्लीवासी हर बारिश में सामना करते हैं। बारिश के कारण लगे जाम में केरी को इतना समय गुजारना पड़ा कि अगले दिन आईआईटी के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने मजाक में कहा कि क्या वे नाव से आए हैं! उनकी इस टिप्पणी से भारतीय शहरों की एक नौका दलाल क्या करता है? बेहाल व्यवस्था चर्चा का विषय बन गई। इस विषय पर संपादकीय छपे और टीवी पर भी चर्चाएं हुईं। सो अमेरिका से जुड़ी असली खबर हम भूल गए।

असली खबर यह है कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते अब इतने मजबूत हो गए हैं कि हमारे रक्षा मंत्री ने पिछले सप्ताह वाशिंगटन में एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे निकट भविष्य में अमेरिकी सैनिक विमान हमारे सैन्य अड्डों से उड़ान भर सकेंगे। एक ऐसा भी समय था, जब हमारे राजनेताओं को अमेरिका से इतनी नफरत थी कि यदि कोई पत्रकार अपने लेख में अमेरिका की तरफदारी करता था, तो उस पर सीआईए का दलाल होने का आरोप लग जाता था। शीतयुद्ध के उस दौर में अमेरिका उन्हीं देशों के साथ दोस्ती करता था, जो युद्ध में उसके साथ सैन्य रिश्ता जोड़ने को तैयार थे। हमारे राजनेता इसके लिए तैयार नहीं थे, जबकि पाकिस्तान के राजनेता जरूरत से ज्यादा तैयार थे। यहां तक कि अयूब खान ने अमेरिकी जासूसी विमानों को पाकिस्तानी जमीन से उड़ान भरने की इजाजत दे दी थी।

ये वे दिन थे, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुटनिरपेक्षता को भारत की विदेश नीति का आधार बना रखा था। सो भारत को उन्होंने तब तक अमेरिकी खेमे से बाहर रखा, जब तक चीन ने हम पर आक्रमण नहीं किया। उस युद्ध में भारतीय सैनिकों के पास जो हथियार थे, वे सौ साल पुराने थे, जबकि चीनी सैनिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस थे। चीन से युद्ध के दौरान नेहरू ने अमेरिका से सैन्य और आर्थिक सहायता मांगी। इसके पीछे भी एक किस्सा है। चीन के साथ युद्ध शुरू होने से कुछ महीने पहले नेहरू जी इंदिरा गांधी के साथ अमेरिका के दौरे पर गए थे। वहां राष्ट्रपति कैनेडी ने उनकी खूब मेहमाननवाजी की, लेकिन नेहरू जी को बहलाने में वह विफल रहे। कैनेडी भारत के साथ दोस्ती चाहते थे, क्योंकि उनको विश्वास था कि भारत ही चीन जैसे ताकतवर देश का मुकाबला कर सकता है। उनका यह भी मानना था कि भारत चूंकि एक लोकतांत्रिक देश है, इसलिए उसके साथ अमेरिका की दोस्ती स्वाभाविक होनी चाहिए। भारत ने दोस्ती का वह मौका गंवाया और इसकी कीमत अपने जवानों के खून से चुकानी पड़ी। तब यदि हम अमेरिका के दोस्त होते, तो शायद चीन हमला करने का साहस न करता। यदि उसी समय अमेरिका के साथ हमारा रिश्ता मजबूत होता, तो एक दशक बाद बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हुए युद्ध में अमेरिका पाकिस्तान के बजाय हमारे साथ होता।

नेहरू जी ने विदेश नीति के मोर्चे पर गलतियां कीं, क्योंकि उनके लिए विचारधारा देशहित से ज्यादा अहमियत रखती थी। ऐसे में जब प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ दिन पहले कहा कि उनकी विदेश नीति का मतलब है भारत का हित या ‘इंडिया फर्स्ट, तो मुझे बहुत अच्छा लगा। सो अब अगर अमेरिका से दोस्ती हो रही है, तो इससे यही समझा जाना चाहिए कि यह दोस्ती भारत के हित में है। इसकी हमें जरूरत है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान एक साथ हैं, और यह हमारे हित में नहीं है।

गाजियाबाद: युवक ने कोर्ट परिसर में तेल डालकर किया आत्मदाह का प्रयास, पड़ोसन लड़की को भागना बना जी का जंजाल

गाजियाबाद: युवक ने कोर्ट परिसर में तेल डालकर किया आत्मदाह का प्रयास, पड़ोसन लड़की को भागना बना जी का जंजाल

गाजियाबाद के कविनगर थाना क्षेत्र स्थित कचहरी परिसर में एक युवक ने अपने ऊपर तेल डालकर आत्मदाह करने की कोशिश की. गौरतलब है कि युवक को आत्महत्या करता देख आसपास के लोगो में भगदड़ मच गई. मिली जानकारी के अनुसार आसपास खड़े लोगों ने युवक के हाथ से माचिस छीन कर उसे पुलिस के हवाले किया. जानकारी के लिए बता दूं कि युवक दलाल द्वारा 10 हजार रुपए मांगने से परेशान होकर आत्मदाह की कोशिश कर रहा था.

गवाही देने से मना करने पर पीड़ित को झूठे केस में फसाया

नोएडा के खोड़ा में लक्ष्मण तिवारी अपने परिवार के साथ रहता है. गौरतलब है कि वह मूल रूप से बिहार का रहने वाला है. जानकारी के लिए बता दूं कि लक्ष्मण पेंट का काम करके अपने परिवार का पालन पोषण करता है. लक्ष्मण ने आगे बताया कि करीब 5 साल पहले एक महिला ने उससे कोर्ट में गवाही देने के लिए बोला था. पीड़ित ने आगे बताया कि गवाही देने से इनकार करने पर महिला ने लक्ष्मण को झूठे छेड़छाड़ के केस में फसा दिया. जिस कारण वह पिछले 5 साल से लगातार कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहा है.

दलाल रुपए देने का बना रहा था, दबाव

पीड़ित ने आगे बताया कि कुछ दिनों पहले पड़ोस में रहने वाला एक युवक-युवती को भगा कर ले गया. जिसमें एक व्यक्ति ने Case में उसका नाम आने की बात कही. उक्त दलाल ने केस से नाम हटाने के लिए लक्ष्मण से 10 हजार रुपए मांगे. ध्यातव्य है कि दलाल पीड़ित पर लगातार दबाव बना रहा था. लक्ष्मण ने आगे बताया कि वह महीने की हर तारीख पर कोर्ट में आता है, जिस पर एक बार में आने जाने पर 200 रुपए खर्च भी होते हैं. इसलिए वह कर्जदार भी बन चुका है. जिससे परेशान होकर उसने कचहरी परिसर एक नौका दलाल क्या करता है? में आत्मदाह करने की कोशिश की.

जाने, पुलिस का बयान

कार्यवाहक SP सिटी प्रथम ज्ञानेंद्र सिंह ने मीडिया सूत्रों से बातचीत के दौरान बताया कि लड़की भगाने के मामले में पीड़ित का कोई भी हाथ नहीं है. जिस किसी दलाल ने झूठा केस दिखाकर पैसे हड़पने की कोशिश की है, उस पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.

U19 World Cup: जंगलों में छिपा, भयानक रातें झेली, जानिए अफगानिस्तान से आयरलैंड तक… इस खिलाड़ी का 8300 km लंबा संघर्ष

अफगानिस्तान के शहर जलालाबाद की गलियों में क्रिकेट खेलने वाले एक टीन एज लड़के को जब आयरलैंड की जूनियर टीम से खेलने का लाइसेंस मिल जाए, तो कहानी का फिल्मी लगना स्वाभाविक है.

U19 World Cup: जंगलों में छिपा, भयानक रातें झेली, जानिए अफगानिस्तान से आयरलैंड तक. इस खिलाड़ी का 8300 km लंबा संघर्ष

अंडर 19 वर्ल्ड कप (U19 World Cup) में 16 देश खेल रहे हैं. लेकिन यकीन मानिए इन 16 देशों के खिलाड़ियों में किसी की भी साइड स्टोरी आयरलैंड के क्रिकेटर मुजामिल शरजाद (Muzamil Sherzad) जैसी नहीं होगी. हम यहां उनके रन, विकेट या काबिलियत की बात नहीं कर रहे. काबिल हैं तभी तो अंडर वर्ल्ड कप खेलने पहुंचे हैं. हमारा मकसद है यहां मुजामिल शरजाद के सफर को बताना. वो सफर जो उन्होंने अफगानिस्तान की गलियों से आयरलैंड की अंडर 19 (Ireland U19) टीम तक का किया है. अफगानिस्तान के शहर जलालाबाद की गलियों में क्रिकेट खेलने वाले एक टीन एज लड़के को जब आयरलैंड की जूनियर टीम से खेलने का लाइसेंस मिल जाए, तो कहानी का फिल्मी लगना स्वाभाविक है.

5 साल पहले की बात है, जब शरजाद की उम्र 14 साल की थी, उनकी मां ने एक दलाल को पैसे देकर उन्हें आयरलैंड ले जाने को कहा, जहां उनके चाचा एक फास्ट फूड के स्टॉल पर काम करते थे. शरजाद के इस सफर में 8 से 9 महीने लग गए. दूसरे प्रवासियों के साथ उन्होंने पाकिस्तान, इरान, तुर्की, बुल्गारिया, सर्बिया, क्रोएशिया, इटली और फ्रांस की सीमाएं लांघी. वो दौड़े, चले , जंगलों में छिपे और मैदानों में सोए. तब जाकर उनका 8300 किलोमीटर लंबा ये सफर पूरा हुआ और वो अपने चाचा से मिल सके.

आयरलैंड में ऐसे चढ़ा क्रिकेट का भूत

आयरलैंड में शरजाद ने देखा कि यहां क्रिकेट खेलकर नए दोस्त बनाए जा सकते हैं और खुद की नई पहचान बनाई जा सकती है. उन्हें ये सब अचंभा सा लगा. लेकिन, उन्होंने ऐसा करने की ठानी, जिससे उनकी किस्मत अचानक पलटने लगी. वो जल्दी ही इस नए देश के वर्ल्ड कप टीम के कंटेंडर बन गए.

आसान नहीं था अफगानिस्तान से आयरलैंड पहुंचना

शरजाद ने अपने पिता को सिर्फ 5 साल की उम्र में ही खो दिया था. गुयाना से द इंडियन एक्सप्रेस के साथ जूम पर बात करते हुए शरजाद ने बताया कि, ” घर में प्रॉपर्टी को लेकर लड़ाई झगड़े हुए. मेरी मां एक दलाल को जानती थी. और, उसने मेरा पैकअप कर दिया. मेरी जिंदगी तब खतरे में थी. ” उन्होंने बताया कि एक बार जब मैं जब कैंप में था . हम क्रोएशिया के बॉर्डर क्रॉस करने की महीनों से कोशिश कर रहे थे.तब हम ट्रक से 3-4 दिन की यात्रा कर मिलान पहुंचे थे.”

उन्होंने बताया कि फ्रांस के चेरबर्ग में उन्होंने नांव पर खड़े एक ट्रक में पूरी रात बिताई थी. वो रात काली और ठंडी थी. उन्होंने उसे अपने एक नौका दलाल क्या करता है? लंबे सफर की सबसे भयानक रात बताया. उन्होंने कहा कि कुछ घंटों बाद मैंने देखा कि ट्रक नाव पर नहीं है और वो चल रही है. ड्राइवर ने जब ट्रक रोका और पीछे का दरवाजा खोला मैं वहां से कूदकर भाग पड़ा था.

शरजाद के मुताबिक किस्मत अच्छी थी कि वो आयरलैंड पहुंचने में कामयाब रहे थे. डबलिन में पहली रात उन्होंने एक पार्क में बिताई क्योंकि उन्हें ये पता नहीं था कि उनके चाचा कहां रहते हैं. एक एशियाई की मदद से वहां डबलिन के रिफ्यूजी सेंटर पहुंचने में कामयाब रहे. इसके बाद उनके चाचा भी उन्हें मिल गए.

फास्ट बॉलिंग हंट से बटोरी सुर्खियां

आयरलैंड में क्रिकेट से शरजाद का जुड़ाव 2 साल पहले हुआ. उन्होंने देखा कि क्रिकेट आयरलैंड तेज गेंदबाज की खोज कर रहा. उन्होंने तुरंत इसके लिए नामांकन कर दिया. क्रिकेट आयरलैंड के टैलेंट पाथवे मैनेजर अल्बर्ट वैन डर मर्वे ने बताया कि वहां 50 प्रतियोगी थे लेकिन शरजाद में उन्हें नेचुरल टैलेंट दिखा.

परिवार से मिलने की ख्वाहिश

उन्होंने बताया, ” पहली बार मैं शरजाद से अक्टूबर 2019 मे मिला, जब वो टैलेंट आइडेन्टिफिकेशन प्रोग्राम में भाग लेने आए थे. वो एक नौका दलाल क्या करता है? एकेडमी एक नौका दलाल क्या करता है? के कुछ बल्लेबाजों को गेंद करा रहे थे. तब मैंने उन्हें देखा था. हमने उनकी गेंदबाजी के कुछ वीडियो बनाए और एकेडमी मैनेजर को दिखाया, जिसके बाद उन्हें आगे के सेशन के लिए बुलाया गया. हमें तब तक उनके पास्ट के बारे में पता नहीं था.” वैन डर मर्वे ने बताया कि उन्हें शरजाद की बीती स्टोरी का पता तब चला जब उन्होंने एकेडमी जॉइन की.

सहवाग और बॉलीवुड के फैन

वीरेंद्र सहवाग और बॉलीवुड के बड़े फैन शरजाद मौजूदा अंडर 19 वर्ल्ड कप में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि IPL में अफगानिस्तान के कई बड़े सितारों को खेलते देख उनकी इच्छा भी इस लीग में खेलने की है. वो आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट्स देखकर हिंदी बोलना भी सीख गए हैं.

क्रिकेट से परे शरजाद की अब एक और ख्वाहिश है जो पूरी होनी बाकी है. ये ख्वाहिश है अपनी मां, दो भाई और बहन से मिलने की, उन्होंने कहा, ” मैंने कभी ये नहीं सोचा था कि मैं वर्ल्ड कप में आयरलैंड के लिए क्रिकेट खेलूंगा . मैं चाहूंगा कि मेरी मां और मेरा परिवार मुझे वर्ल्ड कप में खेलते देखे. मैं उन्हें काफी मिस करता हूं. मैं उन्हें अब आयरलैंड लाना चाहता हैं. मैंने उनके वीजा के लिए अप्लाई भी किया है. देखते हैं भविष्य में क्या होता है.”

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