यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित और कैलटेक के नेतृत्व वाले 14 तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू करेाड़ डाॅलर के लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेब आॅब्जर्वेटरी यानी लीगो को भारत में लगाए जाने का प्रस्ताव है। इसके लिए स्थान का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है लेकिन राजस्थान और महाराष्ट्र के कई स्थानों में सर्वेक्षण किए गए हैं। भारत की इस घोषणा पर वैश्विक समुदाय बेहद उत्साहित है क्योंकि वर्ष 2012 में एेसी ही वेधशाला ऑस्ट्रेलिया में लगाने का एक प्रयास विफल हो गया था क्योंकि मेजबान देश वित्तपोषण का प्रबंध नहीं कर पाया था।

तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू

Year: May, 2019
Volume: 16 / Issue: 6
Pages: 2507 - 2513 (7)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/283060
Published On: May, 2019

भारतीय संगीत और अध्यात्मिक का संबंध | Original Article

Rakesh Kumar Mishra*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

खेल चिकित्सा

अतः कहा जा सकता है कि खेल औषधि विज्ञान के माध्यम से खिलाड़ी की काफी समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाता है। इसके लिए प्रत्येक खेल संस्थान में खेल चिकित्सक, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, चिकित्सालय आदि का होना आवश्यक है जिससे खिलाड़ी की समस्याओं, चोटो, रोगों आदि संबंधित कमियों को दूर किया जा सके।

अस्थि भंग के प्रकार लिखें तथा किन्हीं तीन के बारे में संक्षेप में लिखें।

  1. साधारण अस्थिभंग (Simple Fracture)
  2. विवृत अस्थिभंग (Compound Fracture)
  3. जटिल अस्थिभंग (Complicated Fracture)
  4. कच्ची अस्थिभंग (Green Stick Fracture)
  5. बहुखंड अस्थिभंग (Comminute Fracture)
  6. पच्चड़ी अस्थिभंग (Impacted Fracture)
  7. दबाव अस्थिभंग (Stress Fracture)
  1. साधारण अस्थिभंग: जब किसी भी प्रकार के घाव के बिना अस्थिभंग हो जाती है, उसे साधारण अस्थिभंग कहा जाता है।
  2. विवृत अस्थिभंग: विवृत अस्थिभंग वह अस्थिभंग होता है, जिसमें अस्थि के टूटने केसाथ-साथ त्वचा और मांसपेशियों को भी हानि या नुकसान होता है। सामान्यतया, इस प्रकार के अस्थिभंग में टूटी हुई अस्थि त्वचा को फाड़कर बाहर आ जाती है।
  3. जटिल अस्थिभंग: जटिल अस्थिभंग में टूटी हुई अस्थि आंतरिक अंग या अंगों को भी हानि पहुँचा देती है। ये अंग ऊतक, तन्तु या तन्त्रिका या फिर धमनी भी हो सकती है। इस प्रकार के अस्थिभंग प्राय: बहुत जटिल व खतरनाक होते हैं। इस प्रकार के अस्थिभंग ऊँची-कूद तथा बाँस-कूद वाले खिलाड़ियों के हो सकते है।

आईसीओआरटी-21

रेंज टेक्नोलॉजी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीओआरटी) दुनिया भर में टेस्ट रेंज के सभी पेशेवरों, संबंधित भागीदारों और संबंधित क्षेत्र के शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों को समर्पित है। सम्मेलन विश्व टेस्ट रेंज के विभिन्न विशेषज्ञों और दुनिया भर के कई उल्लेखनीय उद्योगों के साथ बातचीत का अवसर प्रदान करता है।

एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर), चांदीपुर एक डीआरडीओ प्रयोगशाला है जो गाइडेड मिसाइल, रॉकेट, यूएवी और एयरक्राफ्ट जैसे विभिन्न प्रकार के हवाई हथियार प्रणालियों के परीक्षण और मूल्यांकन में शामिल है। पिछले 35 वर्षों में, आईटीआर ने राष्ट्रीय महत्व के 1000 से अधिक मिशनों को अंजाम दिया है।
टेस्ट रेंज के रूप में आईटीआर की यात्रा वर्ष 1982 में बंगाल की खाड़ी के तट के साथ बंजर भूमि के एक विशाल खंड के साथ शुरू हुई थी। प्रारंभ में आईजीएमडीपी (एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम) के तहत प्रणालियों के परीक्षण और मूल्यांकन के उद्देश्य से, वर्षों से, आईटीआर को अत्याधुनिक रेंज इंस्ट्रुमेंटेशन और सहायक सुविधाओं के साथ लगातार उन्नत किया गया है ताकि एक तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू विश्व स्तरीय टेस्ट रेंज के रूप में विकसित किया जा सके। किसी भी प्रकार के हवाई प्रणालियों का परीक्षण और मूल्यांकन करना।
1989 में अग्नि टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल के लॉन्च के बाद, आईटीआर ने सभी चुनौतीपूर्ण परीक्षण आवश्यकताओं का पालन करने और उन्हें पूरा करने के लिए वर्षों में विशाल कदम उठाए और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा परीक्षण, बहु-लक्ष्य सतह जैसे तेजी से जटिल मिशन परिदृश्यों का संचालन किया। सतह और हवा से हवा में अवरोध, एंटी-सैटेलाइट मिशन, और कम ऊंचाई वाले क्रूज प्रक्षेपवक्र वाले वाहन आदि।
आज की तारीख में, विभिन्न डीआरडीओ परियोजनाओं द्वारा विकसित किए जा रहे उड़ान वाहनों के परीक्षण के अलावा, आईटीआर ने भारतीय सशस्त्र बलों के साथ-साथ विदेशी एजेंसियों को शामिल करके संयुक्त रूप से विकसित हथियार प्रणालियों के साथ पहले से ही सेवा में प्रणालियों के परीक्षण भी सफलतापूर्वक किए हैं।
लॉन्च अभियान चलाने के अलावा, एक प्रमुख पहलू जिस पर आईटीआर के भीतर जोर दिया गया है, वह है टेस्ट रेंज से संबंधित उत्पादों और प्रौद्योगिकियों का स्वदेशी विकास। ड्यूल बैंड टेलीमेट्री, फेज्ड एरे टेलीमेट्री, ट्रैकिंग रडार, फ्लाइट टर्मिनेशन सिस्टम आदि जैसी स्वदेशी प्रणालियों को परीक्षण आवश्यकता को पूरा करने के लिए डिजाइन और विकसित किया गया है। आईटीआर के पास इमेज प्रोसेसिंग और कंप्यूटर विज़न, सिग्नल प्रोसेसिंग, वीएलएसआई, डेटा फ्यूजन, डेटा प्रोसेसिंग, एचएमआई के लिए स्थितिजन्य जागरूकता और सुरक्षा मूल्यांकन, सिस्टम मॉडलिंग और सिमुलेशन, संचार और जैसे क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीकों पर काम करने वाले डेवलपर्स की एक टीम है। नेटवर्किंग, खतरे का अनुकरण। आईटीआर द्वारा उठाए गए विकास कार्यों के लिए भारतीय उद्योगों और शैक्षणिक संस्थानों की विशेषज्ञता का उपयोग किया जा रहा है।

भारत में हो सकती थी सदी की महत्वपूर्ण खोज, यहां हुर्इ चूक

भारत में हो सकती थी सदी की महत्वपूर्ण खोज, यहां हुर्इ चूक

1.3 अरब साल पहले दो ब्लैकहोल के बीच हुई भीषण टक्कर की धीमी आवाजें अमेरिका स्थित दो बेहद परिष्कृत संसूचकों पर सुनी गई। तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू आपस में मिलते ब्लैकहोल से पैदा हुई इस आवाज के आधार पर 1000 तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू से ज्यादा वैज्ञानिकों के दल ने गुरूत्वीय तरंगों की खोज कर ली है, जिन्हें दिक् और काल का वास्तविक विचलन कहा जाता है।

इस खोज को सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज माना जा रहा है। यह खोज महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की लगभग एक सदी पहले की गई भविष्यवाणी को भी सच साबित करती है। इस महान खोज के साथ भारत का भी एक बड़ा जुड़ाव है। रमन शोध संस्थान, बेंगलूरू जैसे कई भारतीय संस्थानों ने इस एेतिहासिक उपलब्धि में प्रत्यक्ष योगदान दिया है।

ऊष्मागतिकी के नियम pdf

ऊष्मा की एक उपशाखा अणुगति सिद्धांत (Kinetic Theory) है। इस तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमात्र लघु अणुओं के द्वारा निर्मित हैं। गैसों के संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण विज्ञान है और इसके उपयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। विशेष रूप से इंजीनियरिंग तथा शिल्पविज्ञान में इसका बहुत महत्व है।

ऊष्मागतिकी का अधिक भाग दो नियमों पर आधारित है।

  • ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम – ऊर्जा संरक्षण नियम का ही दूसरा रूप है। इसके अनुसार ऊष्मा भी ऊर्जा का ही रूप है। अत: इसका रूपांतरण तो हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जूल इत्यादि ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि इन दो प्रकार की ऊर्जाओं में रूपांतरण में एक कैलोरी ऊष्मा 4.18 व 107 अर्ग यांत्रिक ऊर्जा के तुल्य होती है इंजीनियरों का मुख्य उद्देश्य ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतर करके इंजन चलाना होता है। प्रथम नियम यह तो बताता है कि दोनों प्रकार की ऊर्जाएँ वास्तव में अभिन्न हैं, किंतु यह नहीं बताता कि एक का दूसरे में परिवर्तन किया जा सकता है अथवा नहीं। यदि बिना रोक-टोक ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन संभव हो सकता, तो हम समुद्र से ऊष्मा लेकर जहाज चला सकते। कोयले का व्यय न होता तथा बर्फ भी साथ तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू साथ मिलती। अनुभव से यह सिद्ध है कि ऐसा नहीं हो सकता है
  • ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम – यह कहता है कि ऐसा संभव नहीं और एक ही ताप की वस्तु से यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा करने के लिये एक निम्न तापीय पिंड (संघनित्र) की भी आवश्यकता होती है। किसी भी इंजन के लिये उच्च तापीय भट्ठी से प्राप ऊष्मा के एक अंश को निम्न तापीय पिंड को देना आवश्यक है। शेष अंश ही यांत्रिक कार्य में काम आ सकता है। समुद्र के पानी स ऊष्मा लेकर उससे जहाज चलाना इसलिये तरंगों के सिद्धांत के तीन पहलू संभव नहीं कि वहाँ पर सर्वत्र समान ताप है और कोई भी निम्न तापीय वस्तु मौजूद नहीं। इस नियम का बहुत महत्व है। इसके द्वारा ताप के परम पैमाने की संकल्पना की गई है। दूसरा नियम परमाणुओं की गति की अव्यवस्था (disorder) से संबंध रखता है। इस अव्यवस्थितता को मात्रात्मक रूप देने के लिये एंट्रॉपि (entropy) नामक एक नवीन भौतिक राशि की संकल्पना की गई है। उष्मागतिकी के दूसरे नियम का एक पहलू यह भी है। कि प्राकृतिक भौतिक क्रियाओं में एंट्रॉपी की सदा वृद्धि होती है। उसमें ह्रास कभी नहीं होता।
  • ऊष्मागतिकी के तीसरे नियम के अनुसार शून्य ताप पर किसी ऊष्मागतिक निकाय की एंट्रॉपी शून्य होती है। इसका अन्य रूप यह है कि किसी भी प्रयोग द्वारा शून्य परम ताप की प्राप्ति संभव नहीं। हाँ हम उसके अति निकट पहुँच सकते हैं, पर उस तक नहीं।
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